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*52 शक्ति पीठों में से एक पूर्णियां का माँ हृदयश्वरी स्थान,जहां माता शती का गिरा था ह्रदय.*

माता सती के शरीर के अंग जहां-जहां गिरे, वहां-वहां बने शक्तिपीठ.

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*52 शक्ति पीठों में से एक पूर्णियां का माँ हृदयश्वरी दुर्गा स्थान,जहां माता शती का गिरा था ह्रदय.*

बनमनखी(पूर्णियां) :- आदि-अनादि काल से आस्था व भक्ति का केंद्र बनमनखी रहा है. जहां एक ऐसा भी मंदिर है जो अनुमंडल मुख्यालय से महज 1.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित शक्ती पीठ स्थल काझी हृदयनगर पंचायत स्थित ह्रदयश्वरी दुर्गा मंदिर नाम से अपनी विशालता एवं भव्यता को लेकर इंडो नेपाल बार्डर से सटे कोशी-सिमांचल क्षेत्र में विख्यात, प्रख्यात एवं सुमार है. इस शक्ति पीठ दुर्गा मंदिर के बारे में बताया जाता है कि शती का हृदय यही पर गिरा था. इसलिए इस जगह को हृदयनगर रूप में चर्चित है. कहा जाता है कि भारत वर्ष में 52 शक्ती पीठों में मां आदि शक्ति के हृदय गिरने का वर्णन पौराणिक कथाओं एवं पुरानों में भी वर्णित है, जिसके बारे में यहां के बुजुर्गो भी स्वीकारते है.

 

 

बताया जाता है मां दुर्गा भगवती यहां स्वयं आए थे. यह मंदिर बहुत प्रखर एवं शक्तिशाली है. शक्ति पीठ दुर्गा मंदिर में कोशी-सिमांचल के अलावा पड़ोसी देश नेपाल, बिहार, झारखंड, बंगाल के श्रद्धालु यहां पूजा-अर्चना के अलावा यहाँ तांत्रिक सिद्दी के लिए भी आते हैं. श्रद्धालुओं की मन्नतें पूरी करने वाली सिद्दी पीठ काझी हृदयश्वरी दुर्गा मंदिर अपनी प्राचीनता के साथ-साथ आज नवीनतम इतिहास को गढ़ रहा है. इस क्षेत्र के बुजुर्गों का मानना है कि यह शक्ति पीठ मंदिर हजारों वर्ष पूर्व से स्थापित है.

 

 

 

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बताया जाता है की उक्त मंदिर के पास से एक नदी बहती थी जिसका नाम हिरनन्य नदी था.उसी के इनार पर कभी मां एक झोपड़ी में स्थापित थे.लेकिन आज वहां पर एक विशाल एवं भव्य मंदिर स्थापित किया जा चूका है. इस मंदिर में मां भगवती की मिट्टी का दो उभरा हुवा पींड है. उसी पिंड की पूजा-अर्चना की जाती है. ऐसी मान्यता है कि माता के दरबार में जो भक्त सच्चे मन से मन्नतें मांगने के लिए आते हैं, उसकी सभी मनोकामनाओं को माँ हृदयश्वरी अवश्य पूरी करती है.

 

बताया जाता है मन्नतें पूरी होने की वजह से यहां प्रतिवर्ष माँ के भक्तों का जनशैलाब उमड़ पड़ता है. नवरात्र के समय श्रद्धालुओं द्वारा मां के चरणों में प्रसाद व चुनरी चढा़या जाता है. साथ ही मां के खोईछा में महिलाएं पुरानी रीति रिवाज से खोइछा भर कर पूजा-अर्चना करती हैं. वहीं भक्तों की मन्नतें पूरी होने पर छागर की बलि भी दी जाती है. यहां अष्टमी को निशा बलि की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. इसके बाद माता का पट्ट खोल दिया जाता है.

 

 

शक्तिपीठ दुर्गा मंदिर पूजा समिति के अध्यक्ष शिवनारायण शाह,मुखिया चन्द्रकिशोर तुरहा,ब्रजेश मिश्रा,पार्षद सूरज मंडल,हृदयनगर पंचायत के पूर्व मुखिया विलास राम आदि ने बताया कि माता जगदंबा की पूजा परंपरागत तरीके और वैदिक रितिरिवाज से की जाती है. मंदिर परिसर में भव्य आरती, माता का जागरण सहित अन्य कार्यक्रमो का आयोजन किया जाता हैं.प्रत्येक वर्ष मंदिर कमिटी की ओर से विजया दशमी के अवसर पर भक्ति जागरण व रावण दहन कार्यक्रम किया जाता है.जिसकी तैयारी में मंदिर समिति के सदस्य दिन –रात एक कर जुटे हुए हैं. मंदिर कमिटी के सदस्यों ने बताया की नवमी एवं दसमी को इतना भीड़ रहती है की भीड़ को नियंत्रित करने में हमारे भोलेंतियर को रात दिन एक करना पड़ता है. इसके अलावा भीड़ को देखते हुए विवि व्यवस्था को बनाए रखने के लिए अनुमंडल प्रशासन की ओर से दंडाधिकारी एवं पुलिस पदाधिकारी के अलावा भड़ी संख्यां में पुलिस बल को तैनात किया जाता है.

 

 

माता सती के शरीर के अंग जहां-जहां गिरे, वहां-वहां बने शक्तिपीठ:-

 

कहानी है कि आदि शक्ति के एक रूप सती ने शिवजी से विवाह किया, लेकिन इस विवाह से सती के पिता दक्ष खुश नहीं थे। बाद में दक्ष ने एक यज्ञ किया तो उसमें सती को छोड़कर सभी देवताओं को आमंत्रित किया। सती बिना बुलाए यज्ञ में चली गईं। दक्ष ने शिवजी के बारे में अपमानजनक बातें कहीं। सती इसे सह न सकीं और सशरीर यज्ञाग्नि में स्वयं को समर्पित कर दिया। दुख में डूबे शिव ने सती के शरीर को उठाकर विनाश नृत्य आरंभ किया। इसे रोकने के लिए विष्णु ने सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल कर सती की देह के टुकड़े किए। जहां-जहां सती के शरीर के अंग गिरे, वो स्थान शक्तिपीठ बन गए। शक्तिपीठों के स्थानों और संख्या को लेकर ग्रंथों में अलग बातें कही गई हैं।

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