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*बनमनखी विधानसभा (Banmankhi Vidhan Sabha Seat) : विपक्ष के सामने बीजेपी के दबदबे को तोड़ने की चुनौती.*

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✍️सुनील कु. सम्राट✍️

बनमनखी (पूर्णियां)।Banmankhi Vidhan Sabha Seat:- बिहार की बनमनखी विधानसभा सीट पर पिछले छह चुनाव से भारतीय जनता पार्टी (BJP) का दबदबा कायम है। लगातार पांच बार से मौजूदा विधायक कृष्ण कुमार ऋषि इस सीट पर काबिज़ हैं और अब तक किसी भी विपक्षी दल ने उन्हें चुनौती नहीं दे पाई है। विपक्ष के सामने सबसे बड़ी चुनौती इसी दबदबे को तोड़ने की है।

विधानसभा का गठन और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: बनमनखी विधानसभा का गठन वर्ष 1962 में हुआ था। इस क्षेत्र का इतिहास पौराणिक मान्यता से जुड़ा है—यहां भगवान नरसिंह ने राक्षस हिरण्यकश्यप का वध किया था। सिकलीगढ़ धरहरा स्थित नरसिंह मंदिर आज भी इस क्षेत्र की पहचान है।

 

1967 में चीनी मिल की स्थापना हुई थी, लेकिन पिछले तीन दशक से इसके बंद होने से स्थानीय स्तर पर रोज़गार का संकट बना हुआ है। बड़ी संख्या में युवा रोज़गार के लिए दूसरे राज्यों की ओर पलायन को मजबूर हैं।

 

👉 पिछले 20 साल से बीजेपी चीनी मिल चालू कराने के नाम पर वोट मांगती रही। मगर हाल ही में यह मिल पूरी तरह समाप्त घोषित हो गई और उसकी जमीन BIADA (बिहार इंडस्ट्रियल एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी) को हस्तांतरित कर दी गई है। अब माना जा रहा है कि एनडीए इस जमीन पर नई फैक्ट्री लगाने का वादा कर सकती है।

समीकरण और जातीय गणित: बनमनखी सीट पर कुल 2,54,544 मतदाता हैं, जिनमें पुरुष 1,33,531 और महिला 1,21,009 हैं। मुस्लिम मतदाता – 12.3% है और यादव मतदाता – 14.4% है। जबकि पासवान, रविदास, कुर्मी, राजपूत और ब्राह्मण भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं।

माना जाता है कि मुस्लिम और यादव मतदाताओं का झुकाव जिस ओर होता है, चुनावी समीकरण उसी तरफ झुक जाते हैं। 2008 के परिसीमन ने भी यहां के राजनीतिक समीकरण बदले।

 

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2020 का चुनावी परिणाम: बीजेपी प्रत्याशी कृष्ण कुमार ऋषि ने आरजेडी के उपेंद्र शर्मा को 27,743 मतों से हराया। बीजेपी को 53.3% वोट, आरजेडी को 37.5% वोट, जन अधिकार पार्टी को 2.1% वोट मिले।
बाकी सभी उम्मीदवार अपनी ज़मानत भी नहीं बचा पाए।

 

मौजूदा विधायक कृष्ण कुमार ऋषि:

  • लगातार 2005 (फरवरी) से 2020 तक पाँच बार विधायक।
  • शिक्षा – इंटर (1994, गोरेलाल मेहता कॉलेज बनमनखी)।
  • पेशा – कृषि और सामाजिक कार्य।
  • संपत्ति – 2 करोड़ रुपये से अधिक, देनदारी – 21 लाख से ज्यादा।

●उनकी लोकप्रियता का कारण जातीय समीकरण पर पकड़ और संगठन की गहरी पकड़ मानी जाती है।

विधानसभा सीट का इतिहास:

  1. 1962 से 1972 – कांग्रेस का दबदबा।
  2. 1977 – जनता पार्टी की जीत।
  3. 1980 और 1985 – कांग्रेस वापसी।
  4. 1990 और 1995 – चुन्नी लाल राजवंशी (बीजेपी और जनता दल)।
  5. 2000 – देव नारायण रजक (बीजेपी)।
  6. 2005 से अब तक – कृष्ण कुमार ऋषि (बीजेपी)।

👉 अब तक: कांग्रेस – 5 बार, बीजेपी – 7 बार, जनता दल/जनता पार्टी – 1-1 बार।

 

वर्तमान चुनौती: बनमनखी में विपक्षी दलों के सामने सबसे बड़ी चुनौती बीजेपी का 25 साल पुराना गढ़ तोड़ना है। मुस्लिम और यादव वोट बैंक मिलकर भी अब तक बीजेपी को परास्त नहीं कर पाए हैं। चीनी मिल बंद होने से लेकर पलायन और बेरोज़गारी तक, स्थानीय मुद्दों पर विपक्ष सवाल तो उठाता है लेकिन मजबूत रणनीति की कमी से जनता को आकर्षित नहीं कर पाता। अब जब चीनी मिल की जमीन BIADA को दी जा चुकी है, देखना होगा कि क्या विपक्ष इसे मुद्दा बना पाता है या फिर एनडीए “नई फैक्ट्री” का सपना दिखाकर फिर से जीत हासिल कर लेती है।

 

✍️ निष्कर्ष:
बनमनखी सीट पर बीजेपी का तिलिस्म तोड़ना विपक्ष के लिए अब भी कठिन है। अगर विपक्ष ठोस चेहरा और रणनीति पेश नहीं करता तो 2025 में भी यह सीट बीजेपी के ही खाते में जाने की संभावना है।

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