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मजदूर का दर्द :ठंड बढ़ने से मजदूरों के घर के चूल्हे हो रहे ठंडे, कनकनी में देर से निकलने से नहीं मिलता काम.

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मजदूर का दर्द : ठंड बढ़ने से मजदूरों के घर के चूल्हे हो रहे ठंडे, कनकनी में देर से निकलने से नहीं मिलता काम.

✍️सुनील कु. सम्राट.
✍️सुनील कु. सम्राट.

पुर्णिया:-ठंड में बढ़ोतरी होने के साथ दिहाड़ी पर काम करने वाले मजदूरों की परेशानी बढ़ गयी है. सुबह कनकनी व कुहासे में देर से निकलने से काम नहीं मिल पाता है. दूसरी ओर काम की कमी से भी अधिकांश निराश हो घर लौट जाते हैं. इससे उनके घर का चूल्हा भी ठंडा रह जाता है.विदित हो कि नगर के मंगलचंद चौक पर सुबह-सुबह ही मजदूरों की टोली आती है. इनमें से अधिकांश के पास गर्म कपड़े का अभाव रहता है. कोई फटी पुराना स्वेटर या किसी का मिला कोर्ट पहने रहता है तो कोई चादर से ही ठंडे का मुकाबला करते दिखता है. परिवार के भरण पोषण के लिए सभी ठंड में ही आठ बजे तक अपने निर्धारित जगह पर पहुंच जाते हैं.लेकिन ठंड बढ़ने के साथ काम की कमी के कारण उन्हें अधिकांश दिन निराश होकर लौटना पड़ता है. दो से तीन दिन में मुश्किल से एक दिन काम मिल पाता है. कुछ इसी तरह की स्थिति रिक्शा व ठेला चालकों की भी है.सुबह अधिक ठंड रहने के कारण इन्हें भी काम नहीं मिल पाता है. इससे इन लोगों के घर का चूल्हा जलना मुश्किल हो गया है.

*नगर के मंगलचंद्र चौक पर प्रत्येक दिन सजती है मजदूरों का मंडी :-

शहर में मुख्य रूप से मंगलचंद चौक पर प्रतिदिन मजदूरों की मंडी लगती है. इनमें बनमनखी प्रखंड के धोकरधा, हृदयनगर, राधानगर, जीवछपुर, मखनाहा, काझी, मलिनियां, मिर्जाचौड़ी, महादेवपुर, कुशहा सहित दर्जनों गांवों के मजदूर हर दिन की भांति इस भयंकर ठंडी में भी सुबह होते ही पहुंचने शुरू हो जाते हैं. दूरदराज के क्षेत्रों से काम की तलाश में आने वाले मजदूरों को यही आस रहती है कि भले ही एक दिन के लिए उन्हें कोई काम मिल जाए, ताकि दिनभर की मेहनत के बाद दो वक्त की रोजी रोटी का इंतजाम हो सके.जिन्हें काम मिलता है वे अपने को भाग्यशाली समझते हैं.इन मजदूरों में अधिक भवन निर्माण आदि के काम करते हैं.


*चौक पर प्रत्येक दिन सजती हैं मजदूरों की मंडी फिरभी यहां धूप, वर्षा, कुहासा के लिए नहीं है कोई इंतजाम :-*

नगर के मंगलचंद्र चौक पर प्रत्येक दिन सुबह से हीं मजदूरों का आने का शिलशिला शुरू हो जाता है, लेकिन नगर प्रशासन यहां इन गरीब मजदूरों के ठहरने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है.मजदूरों ने बताया कि जब आदि काल से मजदूरों का इस चौक से गुजार चलता है तो यहां मजदूरों के ठहरने के लिए धूप, बरसात, कुहासा से बचने के लिए सेड, शौचालय, पानी की व्यवस्था सरकार और प्रशासन को करनी चाहिए. मजदूरों ने बताया कि बहुत सरकार आया और गया, लेकिन गरीब मजदूरों के लिए कोई सहारा नहीं बना.मजदूरों ने बताया कि पीछले वर्ष जब लाॅकडाउन में हम सभी प्रवासी मजदूर अपना घर लोटे थे तो उस वक्त सरकार और प्रशासन ने कहा था.अब यही रोजगार मिलेगा, लेकिन आजतक उन्हें रोजगार नहीं मिला.

*क्या कहते है मजदूर:-

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“मजदूरी करने के लिए सुबह गांव से शहर आते हैं. इस पर करीब 20 रुपये भी खर्च होते हैं.पिछले 15 दिनों से पड़ रही भारी ठंड के कारण काम नहीं मिल रहा हैं.जिससे रोजीरोटी पर आफत आ गई हैं.”

-कुंदन ऋषि, मजदूर, जीवछपुर.

“एक तो ठंड में रसोई का खर्च बढ़ गया है और ऊपर से मजदूरी न मिलने से भरपेट रोटी की भी परेशानी खड़ी हो गई है. स्थिति अगर ऐसी बनी रही तो इस बार ठंड जान लेकर ही जाएगी. सरकार मजदूरों की बेहतरी के लिए कोई सार्थक कदम नहीं उठा रही है.”

-संतोष कुमार (राजमिस्त्री), राधानगर

“-ठंड से पूर्व 350 रुपये में से कम मजदूरी नहीं मिलती थी, लेकिन अब काम कम होने के कारण कोई 300 रुपये भी नहीं दे रहा है.सरकार व प्रशासन को चाहिए कि मजदूरों के लिए कोई ऐसी नीति तैयार करे जिससे उन्हें नियमित रूप से काम मिल सके.

-अमरूद ठाकुर (मजदूर), धोकरधा.

-ठंड बढ़ने से कोई भी रिक्शा में बैठना पसंद नहीं करता.एक तो पहले ही ऑटो की संख्या बढ़ने से रिक्शा को कम सवारी मिलती थी. अब ठंड ने सब कुछ चौपट कर दिया है. दिन भर खड़े रहने के बावजूद शाम में मायूस होकर लौटना पड़ता है.

-रंजीत कुमार (रिक्शा चालक), बनमनखी.

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