*स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना सुमित्रा देवी: गरीबों की रहनुमा, आज गुमनाम*

बनमनखी (पूर्णियां):-स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों को कड़ी चुनौती देने वाली और गरीबों की रहनुमा के तौर पर मशहूर वीरांगना सुमित्रा देवी का नाम आज शायद ही कोई जानता हो। प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा ने उनके अद्भुत योगदान को लगभग भुला दिया है।
सुमित्रा देवी का जन्म पूर्णिया जिले के बनमनखी प्रखंड अन्तर्गत रामनगर फरसाही मिलिक पंचायत के हरपटी गांव में हुआ था (प्रयाप्त साक्ष्य नही)। वे जेल भरो आंदोलन में सक्रिय रहीं और जेल भी गईं। आजादी की लड़ाई में वे लगातार भूमिगत और खुले तौर पर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलनों में भाग लेती रहीं। अंग्रेजों की गोलियों का शिकार होते-होते भी बाल-बाल बचीं, लेकिन उनके हौसले कभी कमजोर नहीं हुए।
आजादी के बाद उन्होंने समाजसेवा और राजनीति में भी सक्रिय योगदान दिया। वर्ष 1952 में वे चौथम विधानसभा (खगड़िया जिला) से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ीं और विजयी भी हुईं। वे पूर्णिया सदर विधानसभा और बनमनखी से जिला पार्षद के चुनाव भी लड़ीं। उनके राजनीतिक जीवन ने गरीबों और वंचितों के हक में आवाज बुलंद की और उनके जीवनभर का संघर्ष लोगों के हक और सम्मान के लिए समर्पित रहा।
करीब सौ वर्ष की आयु में सुमित्रा देवी ने वर्ष 2019 में अपने पैतृक आवास पर अंतिम सांस ली। वे अपने पीछे एक पुत्र और चार पुत्रियों से भरा-पूरा परिवार छोड़ गईं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की अनदेखी के चलते नई पीढ़ी आज उनके नाम और बलिदान से अनजान है। आम जनता ने जिला प्रशासन से मांग की है कि बनमनखी क्षेत्र के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के सम्मान में एक कृति स्तम्भ (स्मारक) का निर्माण कराया जाए ताकि स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर लोग उन्हें याद कर सकें और भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित कर सकें।
नोट:-इस तरह के नायकों को याद करने और उनकी कहानियों को अगली पीढ़ियों तक पहुँचाना हमारी ज़िम्मेदारी है। यदि आपके पास सुमित्रा देवी के योगदान के बारे में अधिक जानकारी हो – जैसे उनके जीवन के प्रसंग, उनके द्वारा किए गए कार्य, उनके आंदोलन से जुड़ी घटनाएँ – तो कृपया साझा करें। मैं उनकी कहानी को बेहतर तरीके से संजोने और प्रसारित करने में आपकी मदद कर सकता हूँ।