काठमांडू, 10 सितंबर।:-नेपाल में सोशल मीडिया बैन से उपजे युवाओं के आंदोलन ने अब गहरे राजनीतिक संकट का रूप ले लिया है। राजधानी काठमांडू सहित कई शहरों में सेना ने मोर्चा संभाल लिया है और अनिश्चितकालीन कर्फ्यू लागू कर दिया गया है। संसद और सरकारी दफ्तरों के बाहर सुरक्षाबलों की भारी तैनाती की गई है।
मौत और घायल
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अब तक कम-से-कम 25 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 633 से अधिक घायल अस्पतालों में भर्ती हैं। प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच झड़पें लगातार जारी हैं।
राजनीतिक हलचल
प्रदर्शनकारियों ने पूर्व चीफ़ जस्टिस सुझीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव रखा है। यह मांग बताती है कि आंदोलन अब केवल सोशल मीडिया बहाली तक सीमित नहीं है, बल्कि व्यापक राजनीतिक बदलाव चाहता है।
युवाओं की आवाज़
“Gen Z Protest” के नाम से चर्चित यह आंदोलन भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी और व्यवस्था की अपारदर्शिता के खिलाफ युवाओं की गहरी नाराज़गी को सामने ला रहा है। प्रदर्शनकारी साफ कह रहे हैं—“अब हमारी बारी है।”
अंतरराष्ट्रीय असर
हिंसा और आगजनी से नेपाल की अंतरराष्ट्रीय छवि को धक्का लगा है। दिल्लीबजार जेल से कैदी फरार हो गए जिनमें से कुछ को भारत-नेपाल सीमा पर पकड़ा गया है। इससे सीमा सुरक्षा पर भी दबाव बढ़ा है।
संपादकीय टिप्पणी
नेपाल का यह संकट लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर गहरा सवाल खड़ा करता है। जब संवाद की जगह बंदूकें और बैन का सहारा लिया जाता है तो नतीजे केवल खून और अराजकता होते हैं। भारत के लिए यह समय है कि वह एक शांत पड़ोसी और सहयोगी साथी की भूमिका निभाए—डिजिटल गवर्नेंस, ऊर्जा परियोजनाओं और युवाओं की आकांक्षाओं में सहयोग करके।
व्यंग्य: नेताओं ने सोचा था, “नेट बंद करेंगे तो शांति आ जाएगी।”
लेकिन हुआ उल्टा—लाइक्स बंद हुए और जिंदगी बंद होने लगी। लोकतंत्र का पासवर्ड अब सबको याद रखना होगा—“बैन नहीं, बैलेंस।”