क्या है 206 साल पुराना कालापानी विवाद, जिसको सुलझाने के लिए भारत और नेपाल के बीच शुरू हुई पहल
न्यूज डेस्क:-भारत और नेपाल के बीच लंबे वक्त से चल रहा कालापानी विवाद अब सुलझ सकता है। नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल भारत दौरे पर हैं। उन्होंने गुरुवार को पीएम मोदी से मुलाकात की। दोनों देशों के शीर्ष नेताओं की मुलाकात के बाद कालापानी विवाद को खत्म करने को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। नेपाल के प्रधानमंत्री ने भी भारत के साथ सीमा विवाद को सुलझाने के संकेत दिए हैं। माना जा रहा है कि दोनों देश विवाद को सुलझाने के लिए जमीन की अदला-बदली कर सकते हैं। भारत और नेपाल के सांस्कृतिक रूप से गहरे संबंध हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों से दोनों के बीच सीमा को लेकर तनातनी चल रही है। आखिर ये कालापानी विवाद है क्या और इसको सुलझाने में अगला कदम क्या होगा, इसे विस्तार से समझते हैं।
206 साल पुराना विवाद
भारत और नेपाल के बीच 1817 यानी 206 साल से ही सीमा विवाद चला आ रहा है। दरअसल नेपाल उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के कालापानी इलाके पर अपना दावा करता है। इस इलाके में तीन गांव आते हैं। इस सीमा विवाद को सुलझाने के लिए कई बार दोनों देशों के बीच बातचीत भी हुई है। 1980 में सीमा विवाद को सुलझाने के लिए भारत सरकार ने एक कमेटी बनाई। लेकिन कोई हल नहीं निकला। इसके बाद 1997 में भारत और नेपाल ने एक संयुक्त टीम विवादित स्थान पर भेजने का फैसला किया, लेकिन ये टीम कभी नहीं पहुंचा। लेकिन 2020 में नेपाल ने अपने नक्शे में कालापानी, लिपुलेख दर्रे और लिंपियाधूरा को शामिल किया, इसके बाद ये विवाद चरम पर पहुंच गया।
तीन हजार आबादी वाला क्षेत्र
कालापानी इलाके में तीन गांव हैं, जहां की आबादी करीब तीन हजार है। यहां रहने वाले लोगों की आय का प्रमुख जरिया इंडो-चीन सीमा व्यापार है। यहां लिपुलेख दर्रे से व्यापार होता है। लेकिन सर्दियों के दिनों में यहां बर्फबारी के चलते ये व्यापार भी बंद हो जाता है। स्थानीय लोग सालभर जंगलों से दुर्लभ जड़ी बूटियां इकट्ठा करते हैं, जिन्हें बेचकर उनका जीवन यापन होता है।
उत्तराखंड का कालापानी इलाका का क्षेत्रफल 372 वर्ग किलोमीटर है। इस इलाके पर आईटीबीपी का कंट्रोल है। साल 2020 में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लिपुलेख दर्रे को उत्तराखंड के धारचूला से जोड़ने वाली एक रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण सड़क का उद्घाटन किया था। इस पर नेपाल ने कड़ी आपत्ति जताई। नेपाल ने कुछ दिनों बाद नया नक्शा पेश किया, जिसमें लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा के क्षेत्र को उसने अपने नक्शे में बताया।
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