✍️ संपादकीय व्यंग्य: ज्यों-ज्यों विधानसभा चुनाव नज़दीक आ रहा है, बनमनखी में नेता जी का दिल धड़कने लगा है।कोई अपना टिकट “पक्का” बता रहा है, तो कोई अपने नाम के आगे “कन्फर्म” की मुहर खुद ही लगा रहा है।जनता कह रही है – “हम तो देख ही रहे हैं, टिकट मिलते ही इनका इलाज़ डॉक्टर नहीं, जनता करेगी।”
बनमनखी सुरक्षित सीट है, लेकिन यहाँ की राजनीति असुरक्षित।राजद पिछले 20 साल से हार रही है, पर हार का कारण खोजने की बजाय हर बार “नया चेहरा” थमा देती है। कभी बाहर वाला, कभी दलबदलू, कभी राजनीतिक पर्यटक – और नतीजा हर बार वही –“राजद उम्मीदवार – मुँह लटकाए, बीजेपी विधायक – फिर से ताज पहनाए।”
बनमनखी के वर्तमान विधायक ऋषि जी तो टिकट पर ऐसे सवार हैं जैसे बरसों से स्थायी पास मिला हो।वहीं जनसुराज से पिपरा के मुखिया मनोज ऋषि भी मैदान में उतरने को तैयार।मतलब यह कि अब चुनावी रणभूमि में “ऋषियों” की महाभारत तय है?– जनता बस कौरव-पांडव की तरह गिनती करेगी।
इस बार सबसे दिलचस्प नज़ारा यह है कि राजद में टिकट चाहने वाले नेता भेष बदलकर दौड़ में हैं।कोई अपने को “सच्चा समाजवादी” बता रहा है, तो कोई “त्यागी”। कुछ तो ऐसे भी हैं, जिन्हें देखकर जनता कह रही है –“ये तो कल तक विरोध में थे, अब टिकट के लिए दाढ़ी-मूंछ तक रंगवा लिए हैं।”
बनमनखी में राजनीति का हाल यह है कि-जनता को सड़क चाहिए, अस्पताल चाहिए, रोजगार चाहिए –लेकिन नेताओं को चाहिए सिर्फ़ “पार्टी का टिकट”।चुनाव घोषित होने में वक्त है, लेकिन टिकट की राजनीति पहले से ही गर्मी की दोपहर में लोहे की छड़ जैसी तप रही है।
इधर जनता सोच रही है :–
“अरे भइया! चुनाव से पहले इतना दौड़-धूप टिकट के लिए है, तो चुनाव बाद जनता के लिए कौन दौड़ेगा?”
👉 यह व्यंग्यात्मक संपादकीय पाठक को गंभीरता और हंसी दोनों का स्वाद देगा.?😊