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बाहुबली से रॉबिनहुड सांसद तक: काली प्रसाद पांडेय नहीं रहे।

काली प्रसाद पांडेय की कहानी बिहार की सियासत का आईना है—जहां अपराध, बाहुबल और जनसेवा का अजीब मेल दिखता है। वे न सिर्फ एक सांसद या विधायक थे, बल्कि बिहार के राजनीतिक इतिहास के विवादित किंतु अविस्मरणीय किरदार थे।...........

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सम्पूर्ण भारत,डेस्क/पटना।:- बिहार की सियासत में “बाहुबली नेता” और “रॉबिनहुड सांसद” के रूप में पहचान बनाने वाले पूर्व सांसद काली प्रसाद पांडेय का शुक्रवार देर रात निधन हो गया। दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। 78 वर्षीय पांडेय लंबे समय से बीमार चल रहे थे।

किसान परिवार से निकलकर संसद तक का सफर: गोपालगंज जिले के रमजीता गांव में 28 अक्टूबर 1946 को जन्मे काली प्रसाद पांडेय साधारण किसान परिवार से आते थे। तेज-तर्रार और जुझारू स्वभाव के कारण उन्होंने कम उम्र में ही राजनीति का रुख किया। वर्ष-1969 में कांग्रेस से सक्रिय राजनीति में कदम रखा और 1980 में पहली बार गोपालगंज विधानसभा से विधायक चुने गए। यही से उनके राजनीतिक करियर की असली शुरुआत मानी जाती है।

 

1984: जेल से जीते चुनाव, बना इतिहास:- 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पूरे देश में कांग्रेस की लहर थी। ऐसे माहौल में काली प्रसाद पांडेय ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में गोपालगंज लोकसभा चुनाव लड़ा और 59% वोट पाकर ऐतिहासिक जीत हासिल की।चुनाव के दौरान वे जेल में बंद थे, फिर भी जनता ने उन्हें विजयी बनाकर संसद तक भेजा। इस जीत ने उन्हें “शेर-ए-बिहार” और “रॉबिनहुड सांसद” की पहचान दिलाई।

 

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दल-बदल और राजनीतिक सफर:-लोकसभा में जीत के बाद वे प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बुलावे पर कांग्रेस में शामिल हो गए।बाद में रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) से जुड़े और राष्ट्रीय महासचिव, प्रवक्ता सहित कई पदों पर रहे।2020 के विधानसभा चुनाव से पहले वे फिर कांग्रेस में लौटे और कुचायकोट सीट से चुनाव लड़ा, हालांकि हार का सामना करना पड़ा।

 

बाहुबली छवि और विवाद:-काली प्रसाद पांडेय का नाम बिहार की बाहुबली राजनीति में लंबे समय तक गूंजता रहा।शहाबुद्दीन जैसे बाहुबली नेता उन्हें अपना गुरु मानते थे।उन पर हत्या और गंभीर मामलों के आरोप लगे, लेकिन अदालत में वे दोषी साबित नहीं हुए। दूसरी ओर, उनकी छवि गरीबों और कमजोरों की मदद करने वाले “रॉबिनहुड नेता” की भी थी। कहा जाता था—“पांडेय जी के दरबार से कोई खाली हाथ नहीं लौटता।”

 

परिवार और निजी जीवन:- पत्नी: मंजू माला पांडेय, तीन बेटे – पंकज, धीरज और बबलू पांडेय एवं भाई: आदित्य नारायण पांडेय (भाजपा एनएलसी) रहे।

 

निधन और राजनीतिक विरासत:-सूत्रों के अनुसार 22–23 अगस्त 2025 को दिल्ली में उनका निधन हो गया। उनके जाने से बिहार की राजनीति का एक ऐसा अध्याय समाप्त हो गया, जिसने बाहुबल, जनसेवा और करिश्माई नेतृत्व तीनों को एक साथ जीकर दिखाया। गोपालगंज और आसपास के इलाके में आज भी उनकी कहानियां सुनाई जाती हैं—जहाँ वे कभी भय और विश्वास दोनों का पर्याय माने जाते थे।

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