“नोट जलाने की नालायकी और भ्रष्टाचार का महाआयोजन”
बिहार में भ्रष्टाचार की कहानियाँ नई नहीं, लेकिन ताज़ा अध्याय ने तो व्यंग्य के भी पन्ने जला दिए। सोचिए, जिस इंजीनियर का काम सड़क और पुल बनाना था, उसने खुद अपने लिए नोटों की “पुलिया” बना ली—बस फर्क इतना कि यह पुलिया चूल्हे की आग में ढह गई।
भ्रष्टाचार की आग में जलते देश में बिहार के एक इंजीनियर साहब ने सचमुच “आग” से रिश्ता जोड़ लिया। करोड़ों की नकदी थी, और जब EOU की टीम छापेमारी के लिए पहुँची तो इंजीनियर साहब और उनकी धर्मपत्नी ने सोचा—“जब तक है जान, तब तक है नोट में धुआँ।”
नाले का नया प्रयोगशाला: नाले वैसे तो गंदगी से जाम होते हैं, लेकिन यहाँ तो “काले धन” की राख ने ही नालों का हौसला तोड़ दिया। करोड़ों रुपये जलाकर टंकी और पाइपलाइन में छुपाने का अनोखा प्रयोग शायद भारत के इंजीनियरिंग कॉलेजों के पाठ्यक्रम में जल्द शामिल हो जाए—“भ्रष्टाचार विज्ञान एवं नोट जलाने की तकनीक”।
घर में बैंक या बैंक में घर? : जब्त संपत्ति देखकर लगता है मानो इंजीनियर साहब का घर ग्रामीण कार्य विभाग का दफ्तर नहीं बल्कि किसी “प्राइवेट रिज़र्व बैंक” की शाखा था। सोना, गहना, महंगी घड़ियाँ, और जमीनों के कागजात ऐसे मिले जैसे आम आदमी के घर से पुराने दूध के बिल।
लोग कह रहे हैं—
- “हमारा पसीना सरकार तक पहुँचते-पहुँचते टैक्स में सूख जाता है और इंजीनियर साहब नोट जलाकर नाले में बहाते हैं।”
- “देश में महंगाई बढ़ी है, लेकिन आग लगाने का शौक अब सिर्फ मोमबत्ती से नहीं, नोटों से पूरा किया जा रहा है।”
राजनीति की मौन स्वीकृति: यह भी सवाल उठ रहा है कि बीते 25-30 साल से ऐसे इंजीनियर कैसे पलते-बढ़ते रहे? शायद ‘सिस्टम’ का चुप रहना ही सबसे बड़ा सबूत है। भ्रष्टाचार को पकड़ा जरूर गया, लेकिन यह केवल एक व्यक्ति का मामला है या “पूरे महकमे का मॉडल प्रोजेक्ट”—यह जांच का विषय है।
निष्कर्ष:-यह घटना केवल करोड़ों रुपये जलाने की कहानी नहीं, बल्कि यह हमारे सिस्टम की पोल खोलती है। “गरीब रोटी के लिए जलता है और अमीर नोट के लिए।” फर्क बस इतना है कि गरीब का धुआँ पेट से निकलता है और अमीर का धुआँ नाले से।