Sampurn Bharat
सच दिखाने का जज्बा

*युवा वकीलों को आर्थिक सहारा : उम्मीदों से भरी एक पहल या अधूरी तैयारी?*

✍️ सम्पूर्ण भारत | विशेष संपादकीय ✍️

- Advertisement -

News Add crime sks msp

- Advertisement -

*युवा वकीलों को आर्थिक सहारा : उम्मीदों से भरी एक पहल या अधूरी तैयारी?*

✍️ सम्पूर्ण भारत | विशेष संपादकीय ✍️

बिहार सरकार ने हाल ही में यह घोषणा की है कि 1 जनवरी 2024 से नामांकित सभी नए अधिवक्ताओं को अगले तीन वर्षों तक ₹5,000 प्रतिमाह स्टाइपेंड दिया जाएगा। साथ ही ई-लाइब्रेरी, पिंक टॉयलेट और अधिवक्ता कल्याण कोष में करोड़ों की सहायता का ऐलान भी हुआ है। यह कदम न्याय व्यवस्था की दिशा में मील का पत्थर माना जा रहा है। लेकिन सवाल यह भी है कि क्या यह घोषणा सिर्फ़ कागज़ पर सीमित रह जाएगी या सचमुच अधिवक्ताओं के जीवन में बदलाव लाएगी?

 

📌 युवा अधिवक्ताओं का संघर्ष:-किसी भी वकील का शुरुआती जीवन बेहद कठिन होता है। लंबी पढ़ाई, महंगी किताबें और फीस के बाद कोर्ट-कचहरी की जमीनी हकीकत उन्हें आर्थिक संकट में धकेल देती है। शुरुआती वर्षों में न तो नियमित क्लाइंट होते हैं, न ही स्थायी आमदनी। कई युवा वकील इसी दबाव में पेशा छोड़ने पर मजबूर हो जाते हैं।ऐसे में यह स्टाइपेंड उनके लिए जीवनरेखा की तरह है। यह योजना यदि ईमानदारी से लागू हुई, तो हजारों युवा वकील अपने पेशे में टिके रहकर न्याय व्यवस्था में योगदान दे पाएंगे।

 

📚 ई-लाइब्रेरी और पिंक टॉयलेट : आधुनिक सोच की झलक:- ई-लाइब्रेरी के लिए ₹5 लाख की सहायता न सिर्फ़ अधिवक्ताओं बल्कि न्यायालयीन व्यवस्था के डिजिटलीकरण में भी योगदान देगी। महिला वकीलों के लिए पिंक टॉयलेट की घोषणा दर्शाती है कि सरकार न्यायालय परिसरों में लैंगिक समानता और बुनियादी सुविधाओं पर भी ध्यान दे रही है।

 

🩺 स्वास्थ्य और कल्याण : अधिवक्ताओं की अनदेखी का अंत?:-वकीलों की आय अनियमित होती है। किसी भी गंभीर बीमारी की स्थिति में वे आर्थिक रूप से टूट जाते हैं। मुख्यमंत्री चिकित्सा सहायता कोष से मदद की गारंटी और अधिवक्ता कल्याण न्यास समिति को ₹30 करोड़ की राशि यह संकेत देती है कि सरकार अधिवक्ताओं को अब केवल “न्यायिक स्तंभ” मानने लगी है, न कि “स्वयं संघर्षशील वर्ग”।

 

News add 2 riya

- Advertisement -

- Advertisement -

🧐 चुनौतियाँ और सवाल:-

1. अधिसूचना लंबित – अभी तक आवेदन प्रक्रिया, पात्रता मानक और वितरण तंत्र पर स्पष्ट गाइडलाइन नहीं आई है।

2. बैकडेटेड भुगतान – क्या जनवरी 2024 से नामांकित सभी को एकमुश्त पिछला भुगतान मिलेगा?

3. पारदर्शिता का संकट – क्या स्टाइपेंड का वितरण बिना पक्षपात और देरी के होगा?

4. स्थायित्व – तीन साल बाद क्या? क्या तब भी सरकार किसी सहायक योजना पर विचार करेगी?

 

✒️ संपादकीय निष्कर्ष:- बिहार सरकार का यह फैसला सराहनीय है। यह न्यायपालिका की जड़ों को मजबूत करने और युवाओं को पेशे में बनाए रखने का सकारात्मक प्रयास है। लेकिन यह योजना तभी सफल होगी,जब-इसे साफ़ नियमों और पारदर्शी व्यवस्था के साथ लागू किया जाए। बार काउंसिल और अधिवक्ता संघ मिलकर इसकी निगरानी और पारदर्शिता सुनिश्चित करें। सरकार तीन साल बाद भी अधिवक्ताओं की वास्तविक समस्याओं पर दीर्घकालिक नीति बनाए।

अन्यथा यह योजना भी कई सरकारी घोषणाओं की तरह केवल राजनीतिक बयानबाज़ी बनकर रह जाएगी।

- Advertisement -

- Advertisement -

News Add 3 sks

Get real time updates directly on you device, subscribe now.

- Advertisement -

Sampurn Bharat Banner

- Advertisement -

Sampurn Bharat Banner