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*“गोरेलाल मेहता महाविद्यालय: हिंदी दिवस या फॉर्च्यूनर दिवस?”*

-:व्यंग्यात्मक संपादकीय:-

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“गोरेलाल मेहता महाविद्यालय: हिंदी दिवस या फॉर्च्यूनर दिवस?”

हिंदी दिवस और स्थापना दिवस का मंच था। अवसर था भाषा और संस्कृति की गरिमा बढ़ाने का, लेकिन मंच पर जब भोजपुरी गाना “दूल्हा देखे में छुछुन्दर, बीबी सुंदर चाहिए, साला ऊपर से इनको फॉर्च्यूनर चाहिए” बजा और छात्राएँ ठुमके लगाने लगीं, तो नजारा देखकर हर कोई अवाक रह गया।

यह दृश्य सोशल मीडिया पर वायरल हुआ और देखते ही देखते विवादों का बवंडर खड़ा हो गया। एक ओर विद्यार्थी परिषद ने कॉलेज प्रशासन पर हिंदी दिवस को मज़ाक बनाने का आरोप लगाया, तो दूसरी ओर प्राचार्य ने सफाई दी—“यह हिंदी दिवस नहीं, बल्कि फेयरवेल कार्यक्रम था।”

 

हिंदी दिवस का नया पाठ्यक्रम:- लोग तंज कस रहे हैं कि अब कॉलेज को नया सिलेबस जारी कर देना चाहिए।

हिंदी साहित्य → “बीबी सुंदर चाहिए”

समाजशास्त्र“ठुमका भी सांस्कृतिक आंदोलन है”

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राजनीति शास्त्र “ABVP बनाम प्राचार्य”

 

जनता का ओपिनियन:-स्थानीय बुद्धिजीवियों और आम लोग सवाल कर रहे हैं—क्या हिंदी दिवस पर यही संदेश देना था? संस्कृति के नाम पर कॉलेज की प्रतिष्ठा का चीरहरण क्यों हुआ? जब छात्राएँ “फॉर्च्यूनर” की डिमांड कर रही थीं, तब प्राचार्य की चुप्पी क्या दर्शाती है?

लोग कह रहे हैं—“सीमांचल के गौरव कहलाने वाले महाविद्यालय में यदि यही कार्यक्रम होंगे तो शिक्षा का स्तर गिरकर मनोरंजन पार्क बन जाएगा।”

सीमांचल की साख पर धब्बा:-जो महाविद्यालय सीमांचल का गौरव कहलाता था, वही अब “DJ कॉलेज” के नाम से ट्रोल हो रहा है। लोग इसे शिक्षा और संस्कृति दोनों के लिए खतरे की घंटी मान रहे हैं।

 

सिख और सबक:- इस विवाद ने हमें एक गहरी सीख दी है—शिक्षण संस्थान केवल किताबों से नहीं, संस्कृति से भी पहचाने जाते हैं। औपचारिक अवसरों पर गंभीरता का पालन जरूरी है, वरना शिक्षा मजाक बन जाती है। प्राचार्य और प्रशासन की भूमिका केवल तमाशबीन बनने की नहीं, बल्कि दिशा दिखाने की है।

 

निष्कर्ष:-हिंदी दिवस का यह आयोजन शिक्षा और संस्कृति पर कटाक्ष बन गया। अब डर यही है कि कहीं अगली बार स्थापना दिवस पर “लौंडा डांस” को भी आधिकारिक कार्यक्रम का हिस्सा न बना दिया जाए।

 

सम्पूर्ण भारत इस वायरल वीडियो की पुष्टि नहीं करता।लेकिन इतना अवश्य मानता है कि—

  1. शिक्षा के मंदिर में इस तरह का वेस्टन कल्चर थोपना उचित नहीं।
  2. फेयरवेल या कोई भी कार्यक्रम हो, वहाँ गरिमा और मर्यादा का पालन जरूरी है।
  3. अगर यह चलन जारी रहा तो कॉलेज की साख “ज्ञान के केंद्र” से हटकर “DJ पार्टी हॉल” में बदल जाएगी।
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