स्वतंत्रता सेनानी स्व. दूधनाथ प्रसाद : त्याग और सेवा की अमर मिसाल.

बनमनखी (पूर्णिया):-बनमनखी के धरती पुत्र स्व. दूधनाथ प्रसाद भारत माता के उन त्यागवीर सपूतों में से थे, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन राष्ट्र की सेवा और स्वतंत्रता संग्राम को समर्पित कर दिया। प्रारंभ से ही वे समाजसेवा में सक्रिय रहे और 1942 के “भारत छोड़ो आंदोलन” में महात्मा गांधी के “करो या मरो” के आह्वान पर निर्भीकता से संघर्ष के मैदान में कूद पड़े।
15 अक्टूबर 1942 को अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें गिरफ्तार कर घोर यातनाओं के बीच मंडल कारा, पूर्णिया में कैद कर दिया। 13 जनवरी 1943 को अथक प्रयासों के बाद साथियों ने उन्हें जमानत पर रिहा करवाया। किंतु गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने की तीव्र आकांक्षा ने उन्हें पुनः संघर्ष पथ पर लौटा दिया। अंग्रेजी शासन ने दोबारा उनके खिलाफ वारंट जारी किया, जिसके बाद वे भूमिगत हो गए, पर उनकी गतिविधियाँ थमी नहीं। उन्होंने भारत माता की स्वतंत्रता के लिए अंतिम क्षण तक संघर्ष जारी रखा।
आजादी के बाद भी राष्ट्र के प्रति उनका समर्पण अडिग रहा। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यों में सक्रिय रहे और बनमनखी प्रखंड के संघ कार्यवाहक के रूप में दायित्व निभाया। 25 सितम्बर 1996 को उनका देहांत हुआ, किंतु देशभक्ति और सेवा की उनकी अमर गाथा आज भी प्रेरणा देती है।
🕰 स्वतंत्रता सेनानी स्व. दूधनाथ प्रसाद – जीवन की प्रमुख घटनाएँ:-
- [1942] महात्मा गांधी के “करो या मरो” के आह्वान पर भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल।
- [15 अक्तूबर 1942] अंग्रेजी हुकूमत द्वारा गिरफ्तार, मंडल कारा (पूर्णिया) में कैद।
- [13 जनवरी 1943] साथियों के अथक प्रयास से जमानत पर रिहाई।
- [1943] अंग्रेज सरकार ने दोबारा वारंट जारी किया, भूमिगत होकर भी संघर्ष जारी रखा।
- [1947] भारत को आज़ादी मिली, राष्ट्र सेवा में सक्रिय बने रहे।
- [25 सितम्बर 1996] देशसेवा में समर्पित जीवन का अंत।
आज जब हम स्वतंत्र भारत में साँस ले रहे हैं, तो यह भी सोचने की जरूरत है कि क्या हमने ऐसे सच्चे सपूतों का कर्ज चुकाया है?
इतिहास की धूल में दबे इन नामों को सामने लाना ही ‘सम्पूर्ण भारत’ के “आजादी का गुमनाम सिपाही” अभियान का उद्देश्य है।
इस मुहिम के अगले पड़ाव में हम आपको ऐसे ही एक और वीर के जीवन से रूबरू कराएंगे, जिनका नाम भले ही किताबों में न हो, लेकिन बलिदान किसी से कम नहीं था।देखते रहें-www.sampurnbharat.com !