*अंग्रेजी फोर्स के घेराबंदी के बावजूद थाने में फहराया तिरंगा, स्वतंत्रता सेनानी निरंजन प्रसाद गुप्ता के अद्भुत साहस को सलाम.*
*निरंजन प्रसाद गुप्ता की डायरी में दर्ज हैं अंग्रेजी हुकूमत की अमानवीय यातनाएं, जेल में इंसानों को जानवरों जैसा रखा गया.*
*अंग्रेजी फोर्स के घेराबंदी के बावजूद थाने में फहराया तिरंगा, स्वतंत्रता सेनानी निरंजन प्रसाद गुप्ता के अद्भुत साहस को सलाम.*

सुनील सम्राट,बनमनखी (पूर्णिया):-बनमनखी हृदयनगर के महान स्वतंत्रता सेनानी स्व. निरंजन प्रसाद गुप्ता ने अंग्रेजों की गोली-बारूद और फोर्स की घेराबंदी के बावजूद 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में राजहाट बनमनखी थाना पर तिरंगा फहराकर अंग्रेजी हुकूमत को सीधी चुनौती दी थी। उनके पौत्र राजीव रंजन के अनुसार, उनके दादा ने अपने जीवनकाल में स्वतंत्रता संग्राम का संक्षिप्त विवरण लिखा था, जो आज भी परिवार के पास सुरक्षित है।
बताया जाता है कि अगस्त क्रांति के दौरान निरंजन प्रसाद करीब 50 हजार जनता के साथ सत्याग्रह का नेतृत्व करते हुए थाना की ओर बढ़े, जबकि थाना सशस्त्र बलों से घिरा था। उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज फहराया और प्रथम सत्याग्रही के रूप में गिरफ्तारी दी। 28 अगस्त 1942 को उन्हें जिला मजिस्ट्रेट और एसपी ने गिरफ्तार कर कड़ी यातनाएं दीं। जनवरी 1943 में उन्हें 9 वर्ष का सश्रम कारावास और 100 रुपये जुर्माना सुनाया गया। रकम नहीं जमा करने पर 6 माह अतिरिक्त सजा का आदेश दिया गया।
उन्होंने फरवरी 1943 से 14 मई 1946 तक लगभग 4 साल भागलपुर कैम्प जेल में कारावास भोगा। जेल से रिहाई के बाद उन्होंने आदर्श पुस्तकालय को फिर से जीवित किया, थाना रिलिफ कमिटी के मंत्री, आदिवासी सेवा समिति एवं हरिजन कल्याण समिति के अध्यक्ष, प्रखंड विकास समिति के सदस्य सहित कई महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए बनमनखी के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
स्व. निरंजन प्रसाद गुप्ता स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने से पहले पोस्ट ऑफिस में कार्यरत थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन सामाजिक सेवा को समर्पित किया और 23 जनवरी 1991 को 79 वर्ष की उम्र में उनका निधन हुआ।
*निरंजन प्रसाद गुप्ता की डायरी में दर्ज हैं अंग्रेजी हुकूमत की अमानवीय यातनाएं, जेल में इंसानों को जानवरों जैसा रखा गया.*
स्वतंत्रता संग्राम के वीर सेनानी स्व. निरंजन प्रसाद गुप्ता के जीवन संघर्ष की गवाही उनकी अपनी लिखी हुई डायरी देती है। उनके पौत्र राजीव रंजन के अनुसार, ब्रिटिश शासन के समय जेल में उनके दादा को असहनीय और अमानवीय यातनाएं दी गईं, जो आज भी उनकी हस्तलिखित डायरी में दर्ज हैं।
राजीव रंजन बताते हैं कि दादाजी के डायरी में लिखा है कि
“हमें जेल में भोजन नहीं दिया जाता था। सुबह-शाम के पहले ही कोठरी में बंद कर दिया जाता था। एक छोटे से कमरे में 50-60 सत्याग्रहियों को जानवरों की तरह ठूंसा जाता था। सुबह और शाम को घन्टों तक शौच के लिए पखाना कोठरी में ही रखा जाता था, जिससे पेशाब-पखाने की बदबू से दम घुटता था।”
*यह विवरण सिर्फ यातना का नहीं, बल्कि आज़ादी के जुनून में झेली गई पीड़ा का दस्तावेज है*
डायरी में यह भी दर्ज है कि भारत रत्न व पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के साथ उन्होंने भागलपुर, पूर्णियां, दुमका, हजारीबाग, खगड़िया सहित कई जेलों में सत्याग्रहियों के साथ यह यातना झेली। इन विवरणों से यह स्पष्ट होता है कि आज़ादी के दीवानों ने सिर्फ अंग्रेजों से लाठी नहीं खाई, बल्कि जेल में हर दिन नरक जैसे हालातों का सामना किया।
उनके अद्भुत साहस और सेवा भाव को आज भी बनमनखी की जनता याद करती है। स्थानीय लोगों ने मांग की है कि उनके नाम पर कोई स्मारक या सार्वजनिक स्थल का नामकरण कर अगली पीढ़ी को उनके बलिदान से अवगत कराया जाए।