जियो डेस्क – मां के द्वारा किए गए कार्यों को मनाने का कोई एक दिन नहीं होता, हर दिन मां को समर्पित होना चाहिए। मां हमेशा अपने बच्चों को अपने आप से पहले रखती है। आज मदर्स डे पर ऐसी ही एक कहानी लॉक डाउन के बीच उभर कर आई जो मां के होने की अहमियत को समझाती है।
महामारी के संकट के दौर से गुजर रहा भारत कई अन्य संकटों से भी जूझ रहा है। कई छात्र-छात्राएं अपने घरों से दूर फंसे हुए हैं। कोचिंग सेंटर का अड्डा माने जाने वाला राजस्थान का कोटा शहर, जहां हजारों-लाखों छात्र देश-विदेश से आकर यहां पढ़ाई करते हैं। लॉक डाउन के चलते छात्र यही फंसे रह गए, लेकिन इसी बीच एक किस्सा सुनने को मिला जिसने मां के प्यार और दुलार का पाठ पढ़ाया।
छत्तीसगढ़ के कोरबा की रहने वाली सुनीता जिन्होंने खुद एम ए समाजशास्त्र से पढ़ाई की, अपने बच्चों को भी आगे बढ़ाना चाहती थी। अपनी बेटी अर्चना को मां डॉक्टर बनना चाहती थी और इसी के लिए उन्होंने उसे कोटा में नीट की तैयारी करने के लिए भेज दिया।
एग्जाम के कुछ महीनों पहले उन्होंने बेटी की मदद के लिए कोटा जाने की ठानी और फिर फरवरी में बेटी अर्चना के पास आकर रहने लगी। सुनीता की बेटी अर्चना नीट की तैयारी के लिए लैंडमार्क सिटी कुन्हारी एलेन सम्यक के एक हॉस्टल में रह रही थी।
सुनीता भी अपनी बेटी के पास आकर उसकी देखभाल में जुट गई लेकिन इसी बीच नेशनल लॉक डाउन के चलते सुनीता और बेटी अर्चना के अलावा हॉस्पिटल की 90 छात्राएं अपने घरों से दूर फंसी रह गई, लेकिन ऐसी मुश्किल घड़ी में सुनीता ने हॉस्टल की सभी छात्राओं को अपनी बेटी की तरह माना सभी का मनोबल बढ़ाया समय-समय पर उन्हें मोटिवेट करती रही।
हॉस्टल की सभी छात्राओं का ध्यान रखा, छात्राओं ने भी सुनीता को अपनी मां मान लिया। ऐसी मुश्किल घड़ी में सुनीता ने हॉस्टल में रह रही 90 छात्राओं की मां बन कर एक मिसाल पेश की।
यहां की छात्राओं का कहना है कि उन्हें लगा ही नहीं की वे सुनीता को नहीं जानती, उन्होंने बिल्कुल एक मां की तरह सबका ख्याल रखा।
सुनिता यहां रह रही सभी 90 बेटियों की मां बनने के साथ उनकी बेस्ट फ्रेंड ही बन गई। आपको बता दें कि बीते दिनों ही कोटा से छत्तीसगढ़ के लिए रवाना हुई बस में सुनीता भी अपनी बेटी अर्चना के साथ अपने घर कोरबा वापस लौट चुकी हैं।
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