हाल-ए-बनमनखी:
यहाँ आश्वासनों की घूंट से बुझती है प्यास. हर बरस सूखते हैं हलक,हर तरफ पानी के लिए मचता है हाहाकार.*
प्रतिनिधि,बनमनखी(पूर्णियां):-
भीषण गर्मी व ऊपर से गहराता जल संकट.एक ओर जहां आसमान आग उगल रहा है वहीं दूसरी ओर घटते भू-जल स्तर से लोगों के हलक सूख रहे हैं. कभी न सूखने वाले कई तालव-पोखर इन दिनों सूखने लगे हैं. तो पीएचईडी विभाग द्वारा विभिन्न सार्वजनिक स्थल पर लगाये गए अधिकांश चापाकल सूख चुके हैं और जो बचे हैं वे भी लोगों को पानी उपलब्ध कराने में हांफते नजर आ रहे हैं. गांव में लगे सरकारी चापाकल हो या निजी चापाकल सबकी कहानी कुछ एक जैसी है.भीषण गर्मी में पानी के संकट से न सिर्फ इंसान बल्कि पशु-पक्षी भी व्याकुल नजर आ रहे हैं.गर्मी के दस्तक के साथ ही बनमनखी के शहरी व ग्रामीण इलाके में लोगों को जल संकट रुलाने लगा है.एक ओर जहां करोड़ों रुपये की लागत से तैयार जलापूर्ति केंद्र इलाके की शोभा बढ़ा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर लोग शुद्ध पेयजल के लिए जेब ढीला कर बाजार से बोतल बंद पानी खरीद कर पिने को मजबूर हो रहे हैं.गौरतलब है कि बनमनखी अनुमंडल मुख्यालय स्थित नगर पंचायत कार्यालय एवं अनुमंडलीय अस्पताल के समीप पीएचईडी विभाग ने वर्ष 2006-07 में करोड़ों की लागत से दो अलग-अलग जल शुद्धिकरण संयंत्र स्थापित कर वर्ष 2011-12 में नगर पंचायत कार्यालय के हेंडओवर कर दिया गया.जिसके बाद नगर पंचायत ने हर-घर में शुद्ध पेयजल पहुचाने की मुहीम को आगे बढ़ाते हुए नगर पंचायत के सभी वार्डों में पाईप लाइन का जाल तो बिछा दिया.जहाँ से आज तक लोगों को एक बूंद शुद्ध पानी तक नसीब नहीं हुआ.अब तो स्थिति यह है कि जलापूर्ति के लिए बिछायी गयी लोहे की पाइप लाइन व जगह-जगह लगाये गये वाटर स्टैंड पोस्ट भी पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुके हैं.जो अब खोजने के बाद भी नही मिलता है. बताया जाता है कि कई बार इसे चालू करने का प्रयास भी किया गया लेकिन एक-दो दिन के बाद पुन: इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.इसके बाद मुख्यमंत्री शहरी पेयजल निश्चय योजना से नगर वासियों को शुद्ध पेयजल की संकट से निजात दिलाने के लिए चलायी जा रही हर घर नल का जल योजना को भी प्रशासनिक उपेक्षा की नजर लग गयी है.इस दिशा में की जा रही कार्य की गति बेहद हीं धीमी बताई जा रही है.इस बाबत नगर व ग्रामीण इलाकों के कई जानकर व्यक्ति बताते हैं कि पिछले कई वर्षों से गर्मी के दस्तक के साथ ही जल संकट की समस्या गंभीर होते जा रही है. ऐसे में करोड़ों रुपये की लागत से बने जल शुद्धिकरण संयंत्र यदि चालू अवस्था में रहता तो बाजार व आसपास के इलाके में पानी की समस्या से निजात मिल जाता. लेकिन बार-बार शिकायत के बावजूद पदाधिकारी व जनप्रतिनिधि इस समस्या को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं.
*करोड़ों की लगत से बने जल शुद्धिकरण सयंत्र बनी शोभा की वस्तु,नगर विभिन्न गली में बिछाए गए लोहा पाईप हो गया गायब.*
पीएचईडी विभाग ने करोड़ो की लगत से बनमनखी अनुमंडल में तीन जल शुद्धिकरण संयंत्र को स्थापीत किया था.जिसमे दो सयंत्र अनुमंडल मुख्यालय में है और एक संयंत्र सरसी बाजार के समीप जंक और जंगल से लड़ रहा है.बताया गया कि उस समय नगर पंचायत के विभिन्न वार्ड एवं मोहल्ले में बिछाये गए लोहे का पाइप लाइन धीरे-धीरे गायब हो गया.जिसका सुराग आज तक नही मिला है.वहीं पीएचईडी विभाग ने करीब 19 वर्ष पूर्व सरसी वासियों को शुद्ध पेयजल आपूर्ति करने के उदेश्य से करोड़ों रूपये खर्च कर जल शुद्धिकरण यंत्र सहित गली गली में पाईप लाइन बिछाकर कुछ दिनों तक शुद्ध पानी का सप्लाई भी दिया.इसके बाद जब बंद हुआ तो आज तक पुनः चालू नहीं हो पाया.ग्रामीणों ने बताया कि देखरेख के अभाव में सरकार की करोड़ों रूपये का यह सयंत्र आज जंक और जंगल के चपेट में सड़ रहा है.विभाग की ढुलमुल निति के कारन लोगों को शुद्ध पेय जल का सपना –सपना हीं बन कर रह गया.एसे में लोग आज भी चापाकल के दूषित पानी पिने को विबस हो रहे है.
*मुख्यमंत्री शहरी पेयजल निश्चय योजना से घर घर सुद्ध पेयजल पहुचाने का दावा,अनियमित की चढ़ी भेंट.*
पिछले एक वर्ष से बनमनखी नगर पंचायत क्षेत्र में मुख्यमंत्री शहरी पेयजल निश्चय योजना के तहत करोड़ों रुपये खर्च की जा रही है.जिसके तहत नगर के अमूमन सभी वार्डों प्लास्टिक का पाइप लाईंन बिछाया गया.जिसे नगर प्रशासन की घोर लापरवाही एवं नगर पंचायत के संवेदकों की लालफीताशाही के कारण जगह जगह नाला निर्माण के नाम पर क्षतिग्रस्त कर दिया गया.जिसके कारण शुद्घ पेयजल का सपना सपना बन कर रह गया है.स्थानीय जानकारों ने कहा कि नगर पंचायत में केवल शुद्ध पेयजल के नाम पर न केवल करोड़ों रुपये खर्च किये गये बल्कि एक योजना सफल भी नही हुआ और दूसरी योजना को चालू कर राशि का दुरूपयोग किया जा रहा है.मामले की सही से जांच हो तो खुलासे न केवल चौकाने वाला होगा.
अनुमंडल के विभिन्न पंचायतों को खुले में शौच मुक्त व साफ रखने के लिए विशेष जागरुकता अभियान समय-समय पर चलाया जा रहा है.लोहिया स्वच्छता अभियान से जुड़े कार्यकर्ताओं के द्वारा घर-घर जाकर शौचालयों का निर्माण कराया जा रहा है. नगर पंचायत क्षेत्र कागजों में ओडीएफ भी घोषित हो चुका है. इधर,नगर क्षेत्र के विभिन्न स्थानों पर बनाए गए सार्वजनिक शौचालय अनदेखी के कारण बदहाल स्थिति में हैं.जिसकी सुधि लेने वाले संवेदनशून्य है.
*पोर्टेबल टॉयलेट में पानी का प्रबंध नहीं:-*
नगर पंचायत के विभिन्न चौक चौराहे पर नगर पंचायत प्रशासन द्वारा लाखों रुपये खर्च कर लगाए गए पोर्टेबल टॉयलेट एवं शौचालय के उचित प्रबंधन एवं देखरेख के अभाव में बदहाल है.एक तरह जहां पानी की व्यवस्था नही रहने के करण लोग पोर्टेबल शौचालय का उपयोग नही करते हैं. वहीं दूसरी तरफ इमरजेंसी यदा-कदा कोई प्रयोग करता भी है तो पानी के अभाव में भाड़ी फजीहत झेलनी पड़ती है.ऐसे में लोग सीट को गंदा कर निकल जाते हैं.जिसके बदबू से आसपास रहने वाले लोगों का जीना मुहाल है.वही हाल सार्वजनिक स्थलों पर बनाए गए शौचालयों का है.इसमें पानी के प्रबंध किए गए थे, लेकिन देखरेख के अभाव में अधिकतर शौचालयों में पानी की टंकी क्षतिग्रस्त हो गई या चापाकल की चोरी हो गई.कई टायलेट शीट व यूरीनरल टूटे है. पानी नहीं है. गंदगी का जमावड़ा है. ऐस में शायद ही कोई इनका इस्तेमाल करता होगा.यदि करता भी है तो मलमूत्र सड़क पर बहता है.जिसके कारण आवागमन में लोगों को काफी कष्ट का सामना करना पड़ता है.
*शौचालय के नाम पर दो करोड़ खर्च,फिर भी झारी में जाने को मजबूर हैं लोग:*
नगर पंचायत को ओडीएफ घोषित करने के नाम पर नगर प्रशासन ने करीब दो करोड़, चार लाख, सत्रह हजार, पांच सौ रूपये खर्च कर बनमनखी के सभी सर्वजनिक स्थल पर सिंटेक्स कंपनी की पोर्टेबुल बायो टॉयलेट एवं पोर्टेबुल यूरिनल को ई-टेंडरिंग के माध्यम से पटना की रिलाईवल इंटरप्राईजेज एजेंसी के द्वारा लगवाया है. शहर में 35 स्थल पर टू शीटर पोर्टेबुल बायोटॉयलेट लगा है जिसपर 60 लाख 55 हजार रुपये खर्च किया. वहीँ 25 सार्वजनिक स्थल पर लगाये गए पोर्टेबुल यूरिनल पर 24 लाख, 87 हजार, पांच सौ रूपये खर्च हुए हैं. जबकि नगर पंचायत को ओडीएफ घोषित करने में रोड़ा आ रहे भूमिहीन परिवारों के लिए सिक्स शीटर पोर्टेबुल बायोटॉयलेट को अधिष्टापित किया गया. जिसपर नपं प्रशासन ने करीब एक करोड़, 18 लाख, 75 हजार रूपये खर्च किया है. इतना राशी खर्च होने के बावजूद भी बनमनखी नगर में लोगों को शौच एवं मूत्र विसर्जन के लिए बड़ी-झड़ी का सहारा लेने की मज़बूरी बनी हुई है.