*“बनमनखी में रजक की एंट्री से सियासत में मचा भूचाल — महागठबंधन ने खेला मास्टर स्ट्रोक!”*

संपादकीय टिप्पणी : बनमनखी की सियासत में फिर बजा “रजक राग”

“बनमनखी में रजक की एंट्री से सियासत में मचा भूचाल — महागठबंधन ने खेला मास्टर स्ट्रोक!”

बनमनखी विधानसभा सीट पर महीनों की खींचतान, सियासी जोड़-घटाव और रस्साकशी के बाद आखिरकार महागठबंधन ने अपने पत्ते खोल दिए हैं। टिकट की बाजी मारी है भाजपा के पूर्व विधायक देवनारायण रजक ने। यह वही रजक हैं जिनकी सियासी पहचान “साफ-सुथरी छवि” और “जमीन से जुड़े नेता” के तौर पर रही है।

 

टिकट पक्के होने के बाद उन्होंने पूर्णिया सांसद पप्पू यादव से शिष्टाचार मुलाकात कर राजनीतिक संकेत भी साफ कर दिया — अब बनमनखी में मुकाबला महज़ दलों का नहीं, बल्कि व्यक्तित्व और भरोसे का होगा। पप्पू यादव का समर्थन निस्संदेह रजक के लिए ऊर्जा का काम करेगा, खासकर तब जब स्थानीय समीकरणों में मुस्लिम-यादव-रजक और व्यापारी वर्ग का गठजोड़ किसी भी प्रत्याशी के लिए निर्णायक साबित हो सकता है।

 

दिलचस्प यह भी है कि वर्षों बाद महागठबंधन के भीतर कांग्रेस को यह सीट मिली है। इससे पुराने कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में नई जान सी आ गई है। लंबे समय से सियासी उपेक्षा झेल रहे दिग्गज नेता अब मैदान में उतरने को तैयार हैं। दूसरी ओर भाजपा के पुराने और हाशिए पर चले गए कार्यकर्ताओं में भी रजक की उम्मीदवारी को लेकर हलचल देखी जा रही है — मानो पुराना कुनबा फिर से एक छत के नीचे आने की सोच रहा हो।

 

बनमनखी, जानकीनगर और आसपास के ग्रामीण इलाकों में देवनारायण रजक की पकड़ पहले से मजबूत मानी जाती है। सहज व्यवहार और सुलझी छवि ने उन्हें हर वर्ग का भरोसेमंद चेहरा बनाया है। यही कारण है कि जैसे ही नाम की घोषणा हुई, राजनीतिक गलियारों से लेकर चाय की दुकानों तक चर्चा का विषय बन गए — “रजक मैदान में उतर गए हैं!”

 

अब सवाल यह नहीं कि कौन मैदान में है, बल्कि यह है कि जनता किस पर विश्वास जताएगी। क्या रजक की सादगी और अनुभव महागठबंधन को राहत देगा या फिर बनमनखी की जनता इस बार कोई नया गुल खिलाएगी?

 

जो भी हो, इतना तय है —बनमनखी की सियासत का पारा चढ़ चुका है, और इस बार मुकाबला दिलचस्प होने वाला है।

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