बनमनखी अनुमंडल की सहुरिया पंचायत में 15वीं वित्त आयोग से आई राशि के ग़बन का मामला अब प्रशासन और राजनीति—दोनों के चेहरे पर कालिख पोत रहा है। शिकायतकर्ता विपिन कुमार की पहल पर यह राज़ खुला कि पंचायत सचिव ने योजना की राशि का हिसाब-किताब कागज़ों पर तो पूरा कर दिया, लेकिन ज़मीन पर योजनाओं की तस्वीर कहीं नहीं दिखी।
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जाँच और नतीजा : सचिव दोषी, बाकी सब ‘निर्दोष’:-जिला पंचायती राज पदाधिकारी की जाँच रिपोर्ट में साफ़ कहा गया कि तत्कालीन पंचायत सचिव ने नियमों का पालन नहीं किया। यानी दोषी वही ठहरे। मगर कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती। सचिव महोदय आराम से सेवानिवृत्त हो गए और बाक़ी पूरा तंत्र—अनुमंडल पदाधिकारी, अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी, बीडीओ, बीपीआरओ—सब “कान में तेल डालकर” सोते रहे।
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25 साल की सत्ता और जनता का विश्वास:- कटाक्ष इस बात पर है कि पिछले पच्चीस वर्षों से बनमनखी विधानसभा सीट पर बीजेपी विधायक सत्ता के शीर्ष पर काबिज़ हैं। पाँच-पाँच बार लगातार जनता ने उन्हें जिताया। इसके बावजूद अनुमंडल में ऐसा घोटाला अंजाम तक पहुँच गया और सब चुपचाप तमाशा देखते रहे। जनता पूछ रही है – “जब विधायक साहब से लेकर एसडीओ और एसडीपीओ तक मौजूद हैं, तब भी अगर पंचायत स्तर पर पैसे डकारे जा रहे हैं तो इन अफसरों-नेताओं का काम आखिर है क्या?”
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इधर गाँव में लोग कहते हैं –“योजनाओं का पैसा सचिव खा गए, अफसर फाइलों में दबा गए, और नेता सिर्फ़ चुनावी भाषणों में गिनवा गए।” “घोटाला हुआ तो सचिव दोषी, बाक़ी सब ‘निर्दोष’। यही है बनमनखी मॉडल।”
निष्कर्ष : जवाबदेही की कमी:- बनमनखी अनुमंडल का यह मामला केवल एक पंचायत का ग़बन नहीं, बल्कि उस प्रशासनिक और राजनीतिक उदासीनता का आईना है जहाँ अफसर और जनप्रतिनिधि केवल कुर्सी की गरमी सँभालते रहे और योजनाओं का पैसा ग़ायब होता रहा। अब जनता की नज़र इस पर है कि क्या इस घोटाले पर वास्तव में कार्रवाई होगी, या फिर यह भी फाइलों और बयानबाज़ी में दबकर रह जाएगा।