“बनमनखी का चुनावी महाभारत–25 साल से एक ही अर्जुन”

✍-:व्यंग्यात्मक संपादकीय:-✍️ बनमनखी की राजनीति बड़ी दिलचस्प है। यहाँ हर पाँच साल में चुनाव जरूर होता है, पर नतीजा वही आता है – “कृष्ण कुमार ऋषि जीते”। लगता है जैसे जनता ने इन्हें “लाइफटाइम एमएलए पास” दे दिया हो।

✍ -:व्यंग्यात्मक संपादकीय:-✍️

बनमनखी की राजनीति बड़ी दिलचस्प है। यहाँ हर पाँच साल में चुनाव जरूर होता है, पर नतीजा वही आता है – “कृष्ण कुमार ऋषि जीते”। लगता है जैसे जनता ने इन्हें “लाइफटाइम एमएलए पास” दे दिया हो।

कांग्रेस की हालत तो ऐसी है मानो 1985 के बाद से सीट पर “नो एंट्री” बोर्ड लगा दिया गया हो। राजद की हालत उससे भी खराब—हर बार नया चेहरा उतारती है, और हर बार जनता कहती है: “भाई साहब, आप अगली बार आइए… हारने की गारंटी पक्की है।”

एनडीए की तरफ से टिकट का सवाल ही नहीं, भाजपा सीधे कहती है – “बनमनखी = कृष्ण कुमार ऋषि, बाकी सब विकल्प अमान्य।”

अब 2025 में फिर वही कहानी दोहराई जाएगी। महागठबंधन में सीट शेयरिंग का तमाशा चलेगा, कांग्रेस और राजद आपस में खींचतान करेंगे। और जनता सोच रही होगी: “भाई, आप लोग बंटवारा कीजिए, लेकिन जीत तो भाजपा की ही होनी है।”

राजनीति का यही मज़ा है—चुनाव होते हैं, प्रचार होता है, वादे किए जाते हैं… लेकिन बनमनखी में रिजल्ट पहले से प्रिंट होकर आता है।

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