✍ प्रखंड सह अंचल कार्यालय की वर्तमान व्यवस्था पर ताजा व्यंग्य ✍
बनमनखी प्रखंड सह अंचल कार्यालय इन दिनों किसी कॉमेडी शो से कम नहीं। छात्र-छात्राएं सुबह से लाइन में खड़े होकर पसीना बहाते हैं, अभिभावक उम्मीद में खड़े रहते हैं—पर जब नंबर आता है, तो वही जादुई मंत्र सुनने को मिलता है – “कल आइए”।
अब जनता समझ चुकी है कि ऑफिस की फाइलें नहीं चलेंगी, तो मोबाइल की स्क्रीन ही हथियार है।
सोशल मीडिया पर पोस्ट की बाढ़ आ गई है—
“छात्र-छात्राओं में त्राहिमाम, अधिकारी मस्त आराम। जनता परेशान और प्रमाण पत्र अटका।”
दूसरा तीर और गहरा है—
“जाति-आय-निवास बनवाने के लिए दक्षिणा व कमीशन दोनों अनिवार्य। जनता-विद्यार्थी हैरान, अफसर-नेता अंजान। चुनाव आने वाला है।”
नीचे कॉमेंट्स में जनता की सच्चाई छलक पड़ती है—
कोई लिखता है, “आर.ओ. तो नेता बन गया है, छात्रों को बेवकूफ़ समझता है।”
दूसरा कहता है, “हर काम में घूस है और जनता ही जिम्मेदार है क्योंकि वोट भी हम ही देते हैं।”
तीसरा चुटकी लेता है, “भैया, फाइलें पेंडिंग नहीं, जनता की जिंदगी पेंडिंग है।”
लेकिन विडंबना देखिए—अधिकारी इन पोस्टों को “जोक्स” मानते हैं और जनप्रतिनिधि इन्हें “फेक न्यूज़” कहकर झाड़ देते हैं। जिन्हें जनता की आवाज़ सुननी थी, वे खुद रिंगटोन पर मस्त हैं।
👉 असली व्यंग यही है—बनमनखी में प्रमाण पत्र से ज्यादा वायरल हो रहे हैं फेसबुक के स्टेटस, और जनता की आहें अब “लाइक” और “कॉमेंट” गिन रही हैं।अगर यही हाल रहा, तो अगले चुनाव में नेता और अफसरों को मतदान केंद्र में वोट नहीं, बल्कि न्यूज़फ़ीड पर ट्रोल मिलेंगे।तब न कुर्सी पर आराम मिलेगा, न ही कमीशन का जुगाड़?????