पूर्णिया सदर अस्पताल में बड़ा खुलासा हुआ है। अबतक हम और आप सोचते थे कि डॉक्टर बनने के लिए डिग्री चाहिए, लेकिन यहाँ का नया नुस्खा कहता है— “डिग्री की ज़रूरत नहीं, अनुमति-पत्र ही काफी है।”
ऑपरेशन थिएटर में मरीज बेहोश है, लेकिन असली बेहोशी तो प्रशासन की है। अस्पताल में निश्चेतना विशेषज्ञ के नाम पर वर्षों से “सहायक” विशेषज्ञ बना बैठा है और किसी को भनक तक नहीं। जांच हुई तो पोल खुली।
समाजसेवी रंजन कुणाल ने हिम्मत की, आवाज़ उठाई। लेकिन आवाज़ उठाने का इनाम क्या मिला? दबाव, धमकी और प्रताड़ना। यानी इलाज करवाइए और फिर शिकायत कीजिए, तो अस्पताल आपके मरीज से ज्यादा आपको ही बीमार बना देगा।
विश्व हिंदू परिषद ने इसे पहली जीत बताया है। जीत सही भी है, क्योंकि यह महज़ एक फर्जी डॉक्टर का मामला नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की “क्लिनिकल कमजोरी” का ऑपरेशन है।
सवाल यह है कि अगर अस्पताल में मूर्छक नकली निकल सकता है तो बाकी कितनी बीमारियाँ असली हैं और कितनी नकली? प्रशासन डिग्री खोज रहा है, जनता भरोसा। लेकिन भरोसा तो पहले ही बेहोश हो चुका है?
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*पूर्णिया सदर अस्पताल में फर्जी मूर्छक का पर्दाफाश, शिकायत पर जांच रिपोर्ट ने खोली पोल।*