अनकट: अथाह समंदर और असीम निगाहें…

लेखक:भूषण जी वरिष्ट पत्रकार


लंबे दिनों के बाद गांव गया. दरवाजे पर कोई नहीं था. जाफरी खोल अपनी बाइक अंदर की और खाली चौकी पर जाकर बैठ गया. 3 घंटे तक दरवाजे से आगे सड़क पर मेरी नजर गड़ी थी. लोगों का आना-जाना जारी था. मेरी तरफ कोई नहीं देख रहे थे. मेरा खुद का घर बेगाना लग रहा था. जब मैं रात में सो गया तो छोटा भाई आया और वह भी सो गया.

 

उसने मुझे इसलिए नहीं जगाया कि उसे लग रहा होगा कि भैया दिन भर परेशान होंगे. सवेरे सवेरे छोटा भाई चाय लेकर आया. मेरे से बातचीत करने लगा. मैंने कहा- मेरी असीम निगाहें किसी अपने को तलाश रही थी, तुम भी फील्ड में थे भाई और दरवाजा खाली खाली था तो मुझे अपना ही दरवाजा अथाह समंदर की तरह लग रहा था.

 

छोटा भाई गंभीर हो गया. फफक गया. बोलने लगा- आज बाबा नहीं है तो कोई नहीं आ रहा. जब मां नहीं रहेगी तो आगे सिर्फ अंधियारा ही दिखेगा. काफी देर तक दोनों भाई के बीच भावुक बात चलने लगी. इसी बीच दिनेश भैया आए और हम लोगों के सुनने के बाद बोले आप लोग जिस तरह से मां-पिता को मानते आए अब वह मसला समाज में कहां दिखता? सचमुच ग्रामीण इलाके में भी परिवार एकल होता जा रहा है.

 

बुजुर्गों की चिंता युवाओं का सब्जेक्ट नहीं बल्कि उनके करिकुलम से आउट होता जा रहा है. जो लोग अपना परिवार लेकर बाहर चले गए उनकी निगाहें भी असीम और जिंदगी अथाह समंदर जैसी हो गई है और खोजने पर भी उन्हें कोई अपना नहीं मिल रहा. यही हालात उनके घर बूढ़े माता-पिता का है. गांव गया तो इसी बात ने मुझे गंभीर चिंतन करने को मजबूर किया.

नोट:- यह मेरी निजी भावनाएं हैं. मेरा अपना चिंतन है. अपनी लेखनी से मैं किसी को आहत भी नहीं कर रहा. अच्छा लगे तो कमेंट कीजिएगा. पसंद ना आए तो माफ कीजिएगा.
भूषण,वरिष्ठ पत्रकार

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