बनमनखी के मां हृदेश्वरी शक्ती पीठ का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है.

बनमनखी के मां हृदेश्वरी शक्ती पीठ का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है.

प्रतिनिधि,बनमनखी:-अनुमंडल मुख्यालय से महज 1.5 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित एक ऐसा मंदिर है जो महाभारत काल से जुड़ा है ऐसी मान्यता है. आज ये स्थल मां हृदेश्वरी शक्ती पीठ के रूप में जानी जाती है. यह मंदिर काझी हृदयनगर पंचायत के दक्षिण व पश्चिम दिशा में है. वर्तमान में यह मंदिर अपनी विशालता एवं भव्यता को लेकर इंडो नेपाल बार्डर से सटे कोशी-सीमांचल क्षेत्र में विख्यात है.

इस शक्तिपीठ दुर्गा मंदिर के बारे में बताया जाता है कि माता शती का हृदय यहीं गिरा था.इसलिए इस जगह को हृदयनगर भी कहा जाता है.किदवंती है कि भारत वर्ष में 52 शक्ती पीठों में मां आदि शक्ति के हृदय गिरने का वर्णन पौराणिक कथा-पुरानों में भी वर्णित है, जो यहां प्रत्यक्ष रूप में है. बताया जाता है मां दुर्गा भगवती यहां स्वयं आए थे.यह मंदिर बहुत प्रखर एवं शक्तिशाली है.

शक्ति पीठ दुर्गा मंदिर में कोशी-सिमांचल के अलावा पड़ोसी देेेश नेपाल, बिहार, झारखंड, बंगाल के श्रद्धालु यहां पूूूजा-अर्चना के अलावा तांत्रिक पूजा करने भी आते हैं.श्रद्धालुओं की मन्नतें पूरी करने वाली सिद्धपीठ काझी हृदेश्वरी दुर्गा मंदिर अपनी प्राचीनता के साथ-साथ आज नवीनतम इतिहास को गढ़ रहा है. बुजुर्गों की माने तो मां का एक छोटा सा झोपड़ी हिरण्य नदी की उस टिला पर मौजूद थे.

इस क्षेत्र के बुजुर्गों का मानना है कि यह शक्ति पीठ का पिंड हजारों वर्ष पूर्व से स्थापित है.उस समय मां एक झोपड़ी में स्थापित थे. आज एक विशाल एवं भव्य मंदिर में स्थापित है. ऐसी मान्यता है कि माता के दरबार में जो भक्त सच्चे मन से मन्नतें मांगते के लिए आते हैं, उसकी सभी मनोकामनाओं को हृदयश्वरी पूरी करती है.

बताया जाता है मन्नतें पूरी होने की वजह से यहां दशहरा में प्रतिवर्ष श्रद्धालुओं का जनशैैैलाब उमड़ता है.श्रद्धालुओं के मन्नतें पूरी होने पर मां के चरणों में प्रसाद व चुनरी चढा़या जाता है.साथ ही सुहागिन महिलाएं मां के खोईछा भर कर पूजा-अर्चना करती हैं.