पति की लंबी आयु व अखंड सुहाग के लिए की जाने वाली मधुश्रावणी व्रत संपन्न

पति की लंबी आयु व अखंड सुहाग के लिए की जाने वाली मधुश्रावणी व्रत संपन्न.

✍️सुनील सम्राट.

सुनील सम्राट,बनमनखी:-अनुमंडल क्षेत्र में चलू सखी बहिना हकार पूरय ले,टनी दाय के बर एलय टेमी दागय लय..! गीत के साथ अपने पति की लंबी आयु एवं अखंड सुहाग के लिए नवविवाहिताओं द्वारा सावन माह में किये जाने वाला 15 दिवसीय मधुर मैथिल मधुश्रावणी व्रत बुधवार को संपन्न हो गया.अंतिम दिन व्रतियों ने श्रद्धा व भक्ति के साथ पूजा अर्चना की. कथ कही महिला ने व्रती को विभिन्न पौराणिक कथा सुनाई.वहीं महिलाएं पारंपरिक देवी गीत गाती दिखी. इस पर्व से 14 दिनों तक घर अंगना भक्तिमय माहौल बना रहा.

टेमी के साथ संपन्न हुआ मधुश्रावणी :-

15 दिवसीय पर्व के अंतिम दिन बुधवार को पूजन विधि विधान तरीके से किया गया. बिदकरी द्वारा व्रती नवविवाहिता को जलते हुए पलीते से टेमी दागा गया. जिसके पीछे मान्यता यह है कि टेमी पूजन में दागे जाने से व्रती को जितना बड़ा फोला होता है.उतना ही पति की उम्र लंबी व प्रेम बना रहता है. हालांकि आधुनिकता के इस युग में यह पूजन सिर्फ विधान मात्र रह गया है. नवविवाहिता के लिए यह अग्नि परीक्षा थी जो पति की दीर्घायु एवं अमर सुहाग की कामना के लिए किए जाने की परंपरा रही है, जबकि कुछ बुजुर्गों महिलाओं का मानना है कि टेमी दागने से पति-पत्नी के बीच मधुर संबंध रहता है.

सुहागिन महिलाएं के बीच पकवानों से भड़ी डाला का वितरण :-

नवविवाहिताओं के द्वारा 15 सुहागिन महिलाओं के बीच फल एवं पकवानों से भड़ी डाली प्रसाद के रूप में वितरण किया गया.ससुराल पक्ष से आए हुए बुजुर्ग लोगों से आशीर्वाद प्राप्त कर पूजन का कार्य संपन्न किया गया. पूजन के उपरांत ससुराल पक्ष से आए मिट्टी के बने सरवा में सुहाग का सामान बाटां गया. नाग, नागिन, हाथी वाली प्रतिमाएं एवं फुल पत्तियों का विसर्जन किया गया.

बरकरार रही पुरानी परंपरा :-

सदियों से चली आ रही मिथिला संस्कृति का महान पर्व नवविवाहिताओं द्वारा पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया गया.इस दौरान महिलाएं समूह बनाकर शंकर भगवान एवं माता पर्वती को खुश करने की परयर्तन करते रही.साथ ही आने वाले पीढ़ी को इस परंपरा को बरकरार रखने का संदेश देते रहे. पर्व के दौरान ना सिर्फ मिथिला संस्कृति बल्कि भारतीय संस्कृति की भी झलक देखने को मिली.पूजन के दौरान नवविवाहिता भारतीय संस्कृति के वस्त्र और श्रृंगार से झलकती रही.