जब दीनाभद्री मौलवी का रूप धारण कर गए थे मक्का मदीना,फिर क्या हुआ….?

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      ✍️सुनील सम्राट✍️

 

सुनील सम्राट,पूर्णियां(बिहार):-बाबा दीना भद्री लोक गाथा बिहार के मैथिली भाषी इलाके में (मुसहर) अनुसूचित जाति के बीच प्रचलित एक लोक गाथा है.बताया जाता है कि मुसहर जाति के लोग दीनाभद्री को लोक देवता के रूप में पूजते हैं. दिना भदरी लोक गाथा में पशुधन सुरक्षा एवं प्राकृतिक संपदा पर आम जनों के अधिकार के भी प्रसंग मिलते हैं.बाबा दीनाभद्री का लोकगाथा बेगारी के खिलाफ संघर्ष की लोक गाथा है.दिना भदरी लोकगाथा सदियों से आम जनों की स्वर देती रही है.कहने को यह एक जाति विशेष की लोक गाथा है लेकिन इस गाथा में वर्णित संघर्षशील का इसे आमजन के मध्य में स्वीकार बनाती है.

 

बिहार के अधिकांश लोक गाथाओं की तरह भी दीना भदरी में भी विशवास और संघर्ष की गाथा है.दीनाभद्री ऐसे 2 युवाओं की गाथा है जो अपने समाज को अत्याचार और शोषण से मुक्त कराने के लिए अपनी जान गवां बैठते हैं.लेकिन हार नहीं मानते हैं और प्रेत योनि में जन्म लेकर अत्याचारी राजा का अंत करते हैं. वास्तव में दीनाभद्री अत्याचार और शोषण के विरूद्ध संघर्ष की निरंतरता की गाथा है.दीनाभद्री गाथा में वर्णित राज्य योगिया,नगर और राजा कनक सिंह धामी भले ही संघर्षशील मन की कल्पना हो,लेकिन दिना भदरी के कथा विन्यास में वर्णित संघर्ष निश्चित रूप से समाज और इतिहास के यथार्थ के बुनियाद पर खड़ा दिखता है.

 

बिहार के सभी प्रचलित लोक गाथाओं की तरह दीना और भद्री भी दलितों के नायक कहे जाते हैं.जो अपने संघर्षशीलता के कारण खास करके मिथिलांचल के दलित जातियों में प्रचलित लोक गाथा अपनी जातीय और क्षेत्रीय सीमाओं से परे पूरे बिहार में समान रूप से पसंद करती है.दीनाभद्री लोक गायन में प्रस्तुति ने रौद्र रस ,बीर रस,करुन रस और वियोग रस की प्रमुखता है. अंतः साक्ष के अनुसार दीनाभद्री श्रमिक चेतना का पोटरा की गीदर पुरोहितबाद,लुलही बाघिन सामंतवाद,जोड़ावर सिंह, विलासिता, गुलामी, जटमल, विद्या और हिरिया-जरिया- फेकुनी आदि मध्यकालीन तंत्र विद्या का भी प्रतिनिधित्व करती है.

 

 

बाबा दीनाभद्री लोक गाथाओं में महाजनी शोषण के खिलाफ भी प्रतिरोध के तत्व मौजूद हैं. किदवंती कथा के अनुसार दीनाभद्री एक बार मौलवी का रूप धारण कर मक्का मदीना पहुंचते हैं और अंततः मक्केश्वर बाबा का दर्शन करते हुए मक्केश्वर बाबा को अपने देश लाने को सोचते हैं. लेकिन मक्केश्वर बाबा के धरती में समा जाने के कारण उन्हें वापस लौटना पड़ता है. इस कथा में मुसहर जाति द्वारा अपनी मुक्ति संघर्ष के अगुवाई के लिए राम के पुनर सृजन का एक अनूठा प्रसंग भी है.इस गाथा में कहा जाता है कि दीना और भद्री दोनों भाई राम और लक्ष्मण के अवतार हैं.

बताया गया कि जब शबरी ने राम को बेर खिलाया तो भगवान राम ने प्रसन्न होकर शबरी से वरदान मांगने को कहा, शबरी ने भगवान रामचंद्र से यह वरदान मांगा की अगले जन्म में आप दोनों भाई मेरे पुत्र के रूप में अवतरित हो ,भगवान रामचंद्र जी ने शबरी के उस वरदान को पूरा करने का वचन दिया.कहा जाता है अगले जन्म में शबरी निरसो मुसहर जाति के रूप में ने जन्म लिया और राम और लक्ष्मण दीना और भद्री के रूप में उनके गर्भ में पैदा हुए.यानी दीना-राम और भद्री-लक्ष्मण और माता निरसो शबरी के अवतार है.कुल मिलाकर दीनाभद्री लोकगाथा बिहार के दलितों की मुक्ति आकांक्षा और संघर्ष के खोए ध्रुवों को जोड़ने वाला मौखिक स्रोत है.

 

जिसे बिहार के कला संस्कृति एवं युवा विभाग तथा पर्यटन मंत्री रहते हुए बनमनखी विधायक सह कृषि उद्योग विकास समिति के सभापति कृष्ण कुमार ऋषि द्वारा बनमनखी में होलीका महोत्सव,बाबा दीनाभद्री महोत्सव और एक माह तक चलने वाले श्रावणी महोत्सव का आगाज किया था. जो अब बनमनखी में व्यापक सांस्कृतिक चेतना का रूप ले चुका है.