प्रतिनिधि,बनमनखी (पूर्णिया):- छात्रसंघ अध्यक्ष अभिषेक सिंह ने पत्रकारो को संबोधित करते हुए कहा की सरकारी एजेंसियां शिक्षा का अधिकार (आरटीई) के नाम पर हर साल जोर-शोर से और मेले लगाकर प्राइवेट स्कूलों में गरीब बच्चों का दाखिला तो करवा रही हैं, लेकिन इसके बाद कोई यह पता लगाने की कोशिश ही नहीं कर रहा है कि ऐसे बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ भी रहे हैं या नहीं। हर साल निजी स्कूलों से ऐसे सौ से ज्यादा बच्चे निकाल दिए जा रहे हैं। नियम नहीं है, फिर भी स्कूल उन्हें गैरहाजिर बताकर बाहर कर रहे हैं। कुछ स्कूलों की रणनीति ये है कि ऐसे बच्चों से स्कूल की हर एक्टिविटी और वस्तु के लिए इतने पैसे मंगाए जाएं कि वे त्रस्त होकर भाग निकलें। ऐसे तमाम बच्चे वापस सरकारी स्कूलों में लौट रहे हैं। दिलचस्प बात ये है कि आरटीई में दाखिला दिलाने वाली सरकारी एजेंसियों को गरीब बच्चों के प्राइवेट स्कूलों से बाहर होने की भनक तक नहीं लग रही है।
सरकारी एजेंसियां गरीब बच्चों को आरटीई से एडमिशन दिलाने के बाद उनकी फीस, किताबों का खर्च और ड्रेस भी मुफ्त दे रही हैं। यह इसलिए ताकि उन्हें निजी स्कूलों में एक भी पैसे अतिरिक्त खर्च नहीं करने पड़ें। इसके बाबजूद राजधानी में ही 2015 में जिन बच्चों का प्राइवेट स्कूलों में दाखिला कराया गया था, उनमें से सौ से ज्यादा इस साल ही सरकारी स्कूलों में लौट चुके हैं। शिक्षाविदों के मुताबिक आरटीई से एडमिशन लेने वाले बच्चों को बाहर निकालने की संख्या प्रदेश स्तर पर हजारों में है। लेकिन इस तरफ अब तक सरकारी एजेंसियां ध्यान ही नहीं दे रही हैं। वे एडमिशन करने, फीस जमा करने और ड्रेस-किताबें देकर ही संतुष्ट हैं।
आरटीई के तहत प्राइवेट स्कूलों में नर्सरी कक्षाओं में ज्यादा एडमिशन हुए। इनमें उन विद्यार्थियों की संख्या ज्यादा है, जो क्लास-वन के पात्र हैं। पिछले साल आरटीई से होने वाले एडमिशन के लिए राज्य शासन ने नए नियम बनाए। इसके तहत ऐसे आवेदनों से पहले सरकारी स्कूलों में फिर, फिर अनुदान प्राप्त और आखिर में प्राइवेट स्कूलों की सीटों पर एडमिशन दिलाना है। ज्यादा सरकारी स्कूलों में नर्सरी नहीं है, इस वजह से परिजन बच्चों का एडमिशन पहली की बजाए नर्सरी में कराने लगे हैं। इस साल आरटीई से हुए 4 हजार दाखिलों में 3 हजार नर्सरी के ही हैं।
ज्यादातर सालभर में बाहर
ज्यादातर प्राइवेट स्कूल आरटीई से आए बच्चों को अधिकतम एक साल ही रख रहे हैं। इसके बाद इनमें से कई को अनुपस्थित बता देते हैं और नोडल अफसरों को सूचित कर देते हैं कि बच्चे नहीं आ रहे हैं। नोडल अफसर भी सरकारी फाइलों की तरह यह सूची शिक्षा विभाग को भेज रहे हैं। जो बच्चे स्कूल नहीं आ रहे हैं, उनके बारे में एजेंसियां पता ही नहीं लगा रही हैं कि वे गए कहां?
हर साल बड़ी रकम खर्च
आरटीई से एडमिशन लेने वाले बच्चों के एवज में शासन प्राइमरी के लिए 7 हजार रुपए और मिडिल के लिए 11,400 रुपए फीस के रूप में भुगतान करता है। किताबों के लिए 250 और ड्रेस के लिए 400 रुपए हर बच्चे को अदा किए जाते हैं। पिछले 6 साल में 16 विद्यार्थियों को प्राइवेट स्कूलों में एडमिशन दिलाया गया। इस लिहाज से देखा जाए तो आरटीई के लिए शासन हर साल बड़ी रकम खर्च कर रहा है। ऐसे मामले पूर्णिया जिले के बनमनखी में भी आया है बनमनखी में बहुत सारे प्राइवेट स्कूलों में गरीब बच्चों का नामांकन लेकर एक 2 महीने के बाद उसे निकाल दिया जाता है गरीब बच्चों के जगह पर आमिर बच्चों को पढ़ाया जाता है बनमनखी में प्राइवेट स्कूल में आरटीई के तहत एक भी बच्चों को पढ़ाया नहीं जा रहा है गरीब बच्चों का नाम देकर अपना जेब भर रहे हैं इन सभी स्कूलों की जांच कर सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए आरटीई के तहत सभी प्राइवेट स्कूलों में गरीब बच्चों का नामांकन लिया जाय।