*कोशी-सीमांचल इलाके में विख्यात है काझी हृदयनगर के भगवान कृष्ण मंदिर,कृष्णाष्टमी पर उमड़ता है भक्तों का जन सैलाब.*
-:कृष्णाष्टमी विशेष:-
सुनील सम्राट,पूर्णियां,(बिहार):-आदि-अनादि काल से आस्था व भक्ति का केंद्र पुर्णिया जिला का बनमनखी रहा है. जहां एक ऐसा भी मंदिर है जो अनुमंडल मुख्यालय से महज 7 किलोमीटर की दूरी पर काझी हृदयनगर पंचायत स्थित कृष्ण मंदिर नाम से अपनी विशालता एवं भव्यता को लेकर इंडो नेपाल बार्डर से सटे कोशी-सीमांचल क्षेत्र में विख्यात है. इस जगह के बारे में बताया जाता है कि काझी गांव के पूर्वजों ने आज से करीब सौ वर्ष पूर्व भगवान कृष्ण का पूजा बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया था.यह मंदिर बहुत हीं प्रखर एवं शक्तिशाली है. कृष्णाष्टमी के पूजा मेें यहां कोशी-सीमांचल के अलावा दूर दराज के श्रद्धालु पूजा-अर्चना करने के लिए आते हैं. श्रद्धालुओं की मन्नतें पूरी करने वाले भगवान कृष्ण मंदिर अपनी प्राचीनता के साथ-साथ आज नवीनतम इतिहास को गढ़ रहा है.बताया जाता है की गांव के मध्य में भगवान श्री कृष्णजी कभी एक झोपड़ी में स्थापित थे, लेकिन आज यहां पर सामुहिक प्रसास से एक विशाल एवं भव्य मंदिर स्थापित किया जा चुका है. इस मंदिर में कृष्णाष्टमी में हर साल 17 मुर्ति बनाया जाता है.कृष्णाष्टमी पर सभी प्रतिमाओं का मैथिल रीतिरिवाज से पंडित के वैदिक मंत्रोच्चार से प्राण प्रतिष्ठा दिया जाता है. उसके अगले दिन भी प्रतिमाओं को विसर्जित कर दिया जाता है.ऐसी मान्यता है कि भगवान कृष्ण के दरबार में जो भक्त सच्चे मन से मन्नतें मांगने के लिए आते हैं, उसकी सभी मनोकामनाओं को भगवान कृष्ण अवश्य पूरी करती है. बताया जाता है मन्नतें पूरी होने पर यहां प्रतिवर्ष भगवान कृष्ण के भक्तों का जनशैलाब उमड़ पड़ता है. श्रद्धालुओं द्वारा भगवान श्रीकृष्ण को बासुरी व प्रसाद चढा़या जाता है.
*क्या है काझी के कृष्ण जन्माष्टमी मेला का इतिहास :-*
कृष्ण मंदिर कमेटी के सदस्य दिलीप झा, ब्रजेश मिश्रा,प्रशांत झा,निक्कू झा,लाल झा सहित दर्जनों लोगों ने बताया कि गांव के पूर्वज गोविंद झा, बनबारी झा, नैनमेन झा, जलधर झा,नृतलाल झा, रसिकलाल झा, चुम्मन झा, जानकी मिश्र, छोटकेन झा, मोजीलाल झा, मखरू मिश्र, भागवत झा, बसंतलाल झा आदि लोग गांव से चंपानगर ढोड़ी कृष्ण जन्माष्टमी का मेला देखने के लिए गया था.जहां उक्त सभी लोगों के मन में विचार आया कि गांव में एक भी देवी-देवता का मंदिर नहीं हैं. क्यों ना चंपानगर ड्योढ़ी के राजा कुमार श्यामानंद सिंह से मिलकर काझी में किसी सार्वजनिक पूजा का विचार लिया जाय. ये सभी लोग राजा साहब के पास जाकर अपना विचार रखा. जहां राजा विचारकों का विचार सुनने के बाद काझी में कृष्णाष्टमी पूजा करने का आदेश दिया.राजा ने कहा कृष्णाष्टमी को छोड़कर सभी पूजा कठिन है.कृष्णाष्टमी हीं एक ऐसा पूजा है जो सहजता पूर्वक संपन्न किया जा सकता है. राजा से विमर्श के बाद सभी विचारक गांव आए, जहां संपूर्ण गांव की बैठक बुलाकर गांव के पूर्व मध्य में गोविंद झा अपने जीवन पर एक फुस की झोपड़ी का निर्माण करवाकर विधिवत प्रतिमाओं को स्थापित कर आकलन 1921 ई.से पूजा आरंभ कर दिया गया.बाद में जमीन कम पड़ने पर सुदिष्ट नारायण झा भी मेला के लिए जमीन दिया. तब से लेकिर आजतक हर वर्ष भगवान कृष्ण की पूजा धुमधाम व हर्षोल्लास के साथ किया जाता है.
*मेला में स्थानीय कलाकारों के अभिनय देखने दूरदराज से आते थे लोग :-*
स्थानीय लोगों ने बताया कि काझी गांव स्थित लगाने वाले मेला में वर्षों से नाटक मंच किया जाता था. जिससे स्थानीय कलाकारों के द्वारा एक से बढकर एक नाटक का का मंचन किया जाता था. इस अभिनय को देखने के लिए आसपास के इलाके के लोग उमड़ पड़ते थे. वर्तमान में गांव के युवाओं के द्वारा भी नाटक का मंचन किया जाता है. बदलते परिवेश में विगत कुछ वर्षों से अभिनय को बंद कर दिया गया.इसके बाद से ग्रामीणों के द्वारा दो रात मंच पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है,