*इश्क का मारा गवारा हूं मैं……*

इश्क का मारा गवारा हूं मैं

 

तुझ पर दिल हारा हूं मैं
चाका चौंध भरी दुनिया में
तुमसे प्रकाशित एक तारा हूं मैं
इश्क का,,,,,

जलता बुझता
हवा के झोका का मारा हूं मैं
तु नदी है
एक किनारा हूं मैं
इश्क का,,,,,

दूर दुनिया दिखती नहीं
तेरे रोशनी से हुआ उजियारा हूं मैं
पागल हमराही चलता हुआ
तेरे जीवन से जी का सहारा हूं मैं
इश्क का,,,,,

सुरभित है मेरी दुनिया तुमसे
घोर तमस का मारा हूं मैं
तु छटकती हुईं सुर्य
तुझसे प्रकाशित तारा हूं मैं
इश्क का,,,,,

तेरी प्रतिबिम्ब आंखों में
तेरी बिंदिया का बड़ा प्यार हूं मै
तुझ पर दिल लुट चुका है
पता नहीं किस्मत वाला या किस्मत का मारा हूं मैं
इश्क का,,,,,

तेरे संग नाव पर सवार
तेरी दीदार से हुआ उजियारा हूं मैं
तु नेत्र तु खगोल शक्ति
तुमसे प्रकाशित किरण बिंब तारा हूं मैं
इश्क का,,,,,

खुद को अब देख नहीं पाते
तेरी आंख से देखा जग सारा हूं मैं
तु संजो कर रख मुझे
अब टूट कर गिरने वाला जमी पर सितारा हूं मैं
इश्क का,,,,,

अपनी नेत्र नयन का ज्योति दे
अपनी ज्योति खोया सार हूं मैं
चेतक सा दौड़ने वाला
तेरी इसारे की जरूर को पुकारा हूं मैं
इश्क का,,,,,

तु सोच थोड़ी
तेरे प्यार में पागल बीमार बेचारा हूं मैं
ऐ विश्व सुंदरी
तुझपे दिल हारा हूं मैं
इश्क का,,,,,

इतनी तकनीक होते हुए भी
तेरी जादुई कला का मारा हूं मैं
मैं घायल परिंदा
तेरी दिलचस्प निगाहों से हुआ कतरा – कतरा , छल्ली – छल्ली बेचारा हूं मैं

© S Kumar